Friday, January 20, 2006

मधेशी पहचान




जिस तरह उदित नारायण झा मुम्बई गए, ठीक उसी तरह मैं अमेरिकाका २००८ का चुनाव ताके बैठा हुँ। नेपाल जाके राजनीति करनेकी कोई योजना नहीं है हमारी। जो लोग ब्रेन ड्रेनकी बात करते हैं वो इन्टरनेट और ग्लोबलाइजेशनको नहीं समझ रहे हैं। नेपालके लिए मैं यहाँ न्यू यर्कमें बैठे बैठे जितना कर रहा हुँ उससे ज्यादा नेपाल जाके करुँगा वैसा मुझे नहीं लगता। लोकतन्त्रके स्थापनाके बाद मैं मुख्य रुपसे एक अनलाइन थिंक ट्याङकके माध्यमसे अपना योगदान देना चाहुँगा। देशके आर्थिक क्रान्तिको मेरी वो योगदान रहेगी। अमेरिका और नेपालके बीच जो भौगोलिक दुरी है वो इन्टरनेट के कारण गायब हो जाती है। आखिर संसदमें जाके भी लोग अपना विचार ही देते हैं। वो विचार तो मैं अभी ही मुफ्तमें दे रहा हुँ।

नेपालके राजनीतिक एवं आर्थिक क्रान्तिमें इस तरह सहभागी होनेसे मेरे क्यारियरको फायदा है। इराक के तरह न बल्कि नेपाल के तरह लोकतन्त्र स्थापना किया जाए विश्व भर। मैं अमेरिकाके डेमोक्रेटिक पार्टीमें उस किसिमका सन्देश देना चाहता हुँ। तो युँ समझिए नेपाल मेरे लिए एक लेबोरेटरी है। मैं उन लोगो में से हुँ जो सपना देखते हैं कि दुनियाके प्रत्येक देश में लोकतन्त्रकी स्थापना हो जाए। दिन में एक डलर के बल पर जो अरबों लोग अपना गुजारा करते हैं उनके लिए लोकतन्त्र से अच्छा उपहार ही नहीं।

मैने सोंचा अमेरिका चला आया, चलो कमसे कम पहाडी बाहुन सबसे मुक्ति मिली। लेकिन नेपालके आन्दोलनमें सहभागी होने के कारण उन पहाडी लोगों से फिर से मुलाकात हो गयी। नेपाल क्युँ न जाया जाए उसका अच्छा उदाहरण ये लोग यहीं बैठे बैठे दे देते हैं। दिनमें जाके डलर कमाते हैं, रातको और शनिवार, रविवारको वापस नेपाल चले जाते हैं। नेपालमें जो इन लोगोका दिमाग डिस्फिगर हुवा, वो अभी भी डिस्फिगर ही है। मुझे तो कभी लगता है माओवादीको ये लोग यहाँसे पैदा करते हैं।


मेरी राजनीतिक काम तो अधिकांश अनलाइन होती है। और मेरा निजी सामाजिक पक्ष तो देखिए न्यू यर्क इतना बडा शहर है। तो मैं इन पहाडी लोगोंका पोल खोल्ने पर क्युँ उतारु हुँ? मेरा तो कुछ बिगाड सकते नहीं। वो इस लिए कि नेपाल में जो मधेशी हैं उनके लिए। यहाँ इन लोगोका हलुवा टाइट् करेंगे तब न वहाँ मधेशी लोगोको फायदा होगा।


प्रवासी मधेशी लोगोका भी उपकार हो जाता है उसीमें। मानसिक दासता तो इन लोगोको भी जकडे हुए है। अपने आपको मधेशी कहने से हिचकते रहते हैं। जो मधेशी खुद गुलाम हो वो देशको क्या खाक् आजाद करेगा?


(जनवरी २०, २००५)

अइ आन्दोलनमें मधेशी अधिकारके बात

कोइ कहइ छइ लोकतन्त्रके लडाईमें मधेशी अधिकारके बात कएलासे आन्दोलन डिस्टर्ब होतइ। हम कहइ छियई होतइ त होतइ। २०४६ सालके आन्दोलनमें देशमें प्रथम शहीद भेलइ धनुषाके यदुकुहासे। लेकिन ओइके बाद जे सम्विधान अलइ ताइमें मधेशी समुदायके साथ विश्वासघात भेल् छइ। से गल्ती अइ बेर न हइ दोहराबेके। हाले जनकपुरमें सात पार्टीके आम सभा भेलइ। नेपालके इतिहासमें ततेक् बड्का आम सभा कहियो न भेल् छलइय। उ तीन लाख मधेशी १३ लाख पहाडीके हौसला बुलन्द करि रहल छइ, आ आहाँ कहबई ओइ मधेशीके चुप होबे के त केना होतइ? देखइ छियइ कतेक् मधेशी सब पढिलिखके बुरिया जाइत् रहइ छइ।

लोग कहइ छइ दलित, मधेशी, जनजाति, महिला। सेहे बात त हमहुँ कहइ छियइ। लेकिन हमरा बुझाइत् रहइय नेपालमें पहाडी-मधेशी वाला मुद्दाके सामनें बाँकी सब मुद्दा फीका परि जाइ छइ। सामाजिक न्याय बेगरके लोकतन्त्र कोनो लोकतन्त्र थोरे भेलई? आ ओइ सामाजिक न्यायके मुद्दामें सबसे नम्बर एक मुद्दा जे छइ, तही पर अगर छलफल न होतई त उ लोकतान्त्रिक आन्दोलन केना भेलई?

हम त जतेक् पहाडी सब हइ आ ओक्कर पिछ्लग्गु मधेशी सब हइ तेक्कर सबके काम आसान क देनें छियइ। हम त एगो संविधाने लिख् देनें छियइ। सहमति असहमति जाहेर करेके सबके मौका दे रहल छियइ।

Proposed Republican Constitution 2006

दुनियाँ भरमें छिरियाइल मधेशी सबके अप्पन अप्पन मानसिक दासतासे मुक्ति पाबेके इ आन्दोलन एगो सुवर्ण मौका ही छई। प्रवासी मधेशी सब अइ आन्दोलनके सहयोग कके नेपालमें रहि रहल लोगके गुण न लगा रहल हई, बल्कि खुद् मुक्ति पा रहल हइ।

देखइत् रहइ छियइ कतेक् पहाडी सब मधेशी शब्द तक उच्चारण करे से इन्कार करइत् रहइ हइ। सडलपाकल दिल हइ तेकरा सबके। उ सब सामाजिक प्रदुषण पैदा करइत् रहइ छइ। उ सामाजिक प्रदुषण प्रवासमें भी छइ। मुक्तिके लडाइ त प्रवासमें भी छइ। विदेशमें त अप्पन अप्पन सबके क्यारियर रहई छइ, दाल रोटीके सवाल प कोनो पहाडीके दाल न गलइ छइ, तइयो देखइत् रहइ छियइ कतेक मधेशीके मधेशी अधिकारके बात करे में जेना डर लगइत् रहइ छइ। मानसिक दासता एगो हिस्का जिका भ गेल् रहइ छइ। जेना कतेक् लोग नेंओ चिबबइत् रहइ छइ।

नेपालमें डेढ करोड मधेशी दोसर दर्जाके नागरिक भ के रहि रहल हइ। प्रवासमें मधेशी सब पहाडी सामाजिक सर्कल् सबमें दोसर दर्जाके सामाजिक प्राणी भ के रहि रहल हई। दुन्नुके स्थितिमें बहुत ज्यादा अन्तर न हइ।

कोनो पहाडी आहाँ प्रति पहाडी-मधेशीके फिलिङ करइय त उ त आहाँके माइ बापके गाली दे रहल हबे, कि नइ? आहाँके परिवारके, आहाँके घर अङनाके, आहाँके गामके, आहाँके दुरा दर्वज्जा सबके गाली दे रहल हबे। से आहाँ कइला बर्दास्त करि रहल छियइ? अप्पन भाषा, संस्क्रृतिके अपमान आहाँ केकरा पुछिके सहि रहल छियइ?

समानताके इ लडाइ आहाँ लडियउ, आ से जे नइ करबइ त वहे लडाइ आहाँके बालबच्चाके लडे पडत्। नेपालके इ लोकतान्त्रिक आन्दोलन आ ओइ भितरके सामाजिक न्यायके लडाइ ततेक् महत्वपूर्ण छइ। समय दे सकइ छियइ त समय दियउ, पैसा दे सकइ छियइ त पैसा दियउ, राजनीतिक रूपसे सक्रिय भ सकइ छियइ त से होइयउ।

लोकतन्त्रके नारा आ मधेशी अधिकारके नारा बिल्कुल साथ ले जाएके हइ। आन्दोलनके अन्तर्गत जे पहाडी आहाँके साथ समानताके व्यवहार न करइय उ आन्दोलनकारी नइ भेलइ।

(जनवरी १५, २००५)

Janakpur Rally, Biggest In Nepal Since 1990
PCP: Pahadi Chauvinist Pig
Madhesi
Nepal's Terai People In Deplorable Conditions: Mahto
Words Matter

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