Sunday, July 28, 2019

के नेपाल लाई अर्को संविधान सभा को आवश्यकता छ?



के नेपाल लाई अर्को संविधान सभा को आवश्यकता छ?

लोकतान्त्रिक तवरले बनेको संविधान को घोषणा लाई आधा देशले कालो दिवस को रुपमा मनाउँदैन। लोकतान्त्रिक तवरले बनेको संविधान को घोषणा गर्दा एक दुई सय मान्छे शहीद हुनुपर्दैन। लोकतान्त्रिक तवरले बनेको संविधान देश माथि लादन का लागि एउटा स्वतः स्फुर्त आन्दोलन, एउटा शांतिपुर्वक संचालित आन्दोलन माथि फ़ासिस्ट दमन गरिँदैन। त्यो फ़ासिस्ट दमन को रिपोर्ट लाई कुनै पनि लोकतान्त्रिक चरित्र भएको प्रधान मंत्री ले दबाएर राख्न सक्दैन।

स्वाभाविक छ यो संविधान अवैध छ। यो समाजवादी होइन फ़ासिस्ट संविधान नै हो। त्यसैले त नेकपा को एक जना शीर्ष पदाधिकारी ले प्रधान मंत्री निवासकै जग्गा आफ्नो नाम मा गर्न भ्याएको छ। पञ्च हरु पनि चोरी गर्दा लुकी लुकी गर्थे। कसैले थाहा पाऊँछन कि भन्ने डर हुन्थ्यो। नेपालका सत्ताधारी फ़ासिस्ट हरु लाई त त्यो डर पनि नलाग्ने रहेछ।

हुन त संविधान सभाले पनि दुई तिहाई ले नै संविधान पास गर्ने हो, र आखिर संसदले कुनै पनि बेला दुई तिहाई ले संविधान संसोधन गर्न सक्छ। संविधान सभा नै किन चहियो? संसद छँदै छ त।

संविधान सभाले संसदले गर्ने प्रत्येक काम गर्न सक्छ। सरकार बनाउन र ढालन सक्छ। संविधान बाहेक का कानुन बनाउन हटाउन सक्छ। तर संसदले संविधान सभाले गर्ने प्रत्येक काम गर्न सक्दैन। संसदमा व्हिप लाग्छ। संविधान सभामा व्हिप जारी गर्न पाइँदैन। भने पछि प्रत्येक संविधान सभा सदस्य ले निर्धक्क भएर बोल्न पाउँछ र मतदान गर्न पाउँछ। संविधान को प्रत्येक धारा र उपधारा बारे प्रत्येक संविधान सभा सदस्य ले बोल्न पाउने भने हुन्छ। त्यो बहस बिना कुनै मतदान हुँदैन। सिंगो संविधान बारे एउटा मतदान हुँदैन। प्रत्येक धारा र उपधारा बारे छुट्टा छुट्टै मतदान हुन्छ।

देशमा राजतन्त्र फर्केर आउँदैन। त्यो पारसले सुनिश्चित बनाइसकेको कुरा। राजतन्त्र को भुत देखाएर देशमा फ़ासिस्ट संविधान लादने काम भयो। नहीं तो गब्बर आ जाएगा भन्ने काम भयो।

देशले संविधान संसोधन होइन संविधान को अवसान खोजेको हो। देशले नया संविधान सभा नै खोजेको हो।

त्यहाँ सम्म पुग्ने बाटो के हो? देशले नया संविधान सभा नै खोजेको छ भनेर जनताको मा जाने। मैंडेट लिने। सरकार बनाउने र सम्विधान सभाको चुनाव गर्ने।

यो संसोधन गर्न नमिल्ने संविधान हो। प्रयास बेकार छ।


Sunday, July 21, 2019

के सीके राउत का अगाडि इम्मानुएल मेक्रोन को बाटो उपलब्ध छ?



के सीके राउत का अगाडि इम्मानुएल मेक्रोन को बाटो उपलब्ध छ? फ्रांस का इम्मानुएल मेक्रोन ले त्यति बेला का फ्रांस दुई ठुला पार्टी को झंडा नबोकेर नै फ्रांस को राष्ट्रपति पद जितेर देखाइदिए। लगत्तै आफ्नो नया पार्टी मार्फ़त त्यस पछि संसद पनि बजाए। के सीके राउत सँग त्यो बाटो उपलब्ध छ?

इम्मानुएल मेक्रोन त्योभन्दा पहिला मंत्री भएका मानिस थिए। दुई ठुला पार्टी मध्ये एक को मंत्रिमंडल मा थिए। एकाएक आएका भने होइनन। फ्रांस को साक्षरता, राजनीतिक चेतना र आर्थिक समृद्धि अर्कै लेवल मा छ। त्यहाँ को चुनाव पनि अर्कै किसिमको छ। राष्ट्रपति प्रत्यक्ष निर्वाचित हुने देश। इम्मानुएल मेक्रोन ले फ्रांस मा जे गरे त्यो शायद अमेरिका, बेलायत, जर्मनी, भारतमा संभव छैन। नेपालको संसदीय व्यवस्था पनि त्यस्तै छ।

तर गर्ने नसकिने भने होइन। सच्चा संघीयता, भ्रष्टाचार, आर्थिक क्रांति को मुद्दा लाई दरो सँग समाएर सम्मिश्रण गरेर पस्किन सके शायद त्यस्तो ज्वारभाटा ल्याउन सकिन्छ। तर त्यो गार्हो काम हो। फेरि मधेस अलग देश भनेर आफ्नो इमेज बनाएका मानिस लाई सारा देशले पहिलो चुनावमैं पत्याउने संभावना धेरै नहुन सक्छ।

मेनस्ट्रीम (मध्यमार्ग) मा आएपछि त्यो मेनस्ट्रीम मा आएकै कारणले चर्चामा रहेका छन सीके। कुनै नया मुद्दा सल्काउन सकेको देखिँदैन।

यी बिभिन्न कारणले मेरो विश्लेषण छ शायद सीके का अगाडि इम्मानुएल मेक्रोन को बाटो उपलब्ध छैन कि? ठोस बाटो भनेको अहिले पहिलो चरणमा कस्सिएर संगठन निर्माण गर्ने, दोस्रो चरणमा पार्टी एकीकरण गर्ने, संसद, पार्टी र मीडिया मा स्पेस बनाउने र त्यो स्पेस बढाउँदै लाने बाटो शायद बढ़ी उपलब्ध पो छ कि? यो संगठन विस्तार र पार्टी एकीकरण को बाटो बढ़ी ठोस बाटो हो। एकीकरण पछिको दोस्रो महाधिवेशन सम्म मा पार्टी अध्यक्ष पद नै पनि ताकन सकिन्छ। त्यो बढ़ी संभव बाटो हो।

पार्टी एकीकरण का समय, समयतालिका, अंकगणित, और केमिस्ट्री



Friday, July 19, 2019

आरक्षण बहस: राजेश अहिराज र तुला नारायण साह



Pros and Cons
Arguments For and Against Affirmative Action
The Case for Affirmative Action
The Best New Argument for Affirmative Action
7 Criticisms Of Affirmative Action That Have Been Thoroughly Disproved

पार्टी एकीकरण का समय, समयतालिका, अंकगणित, और केमिस्ट्री

Federalism: Unfinished Business In Nepal
सपा, राजपा, जपा र त्रिपा को एकीकरण
समाजवादी पार्टी ले १० प्रदेशको कुरा उठाएर देशमा तेस्रो ध्रुवको निर्माण गर्न सक्छ



पार्टी एकीकरण का समय

नेपालमें सच्चा संघीयता लागु करने से पहले आर्थिक क्रांति संभव ही नहीं है। या तो आप इस बातको मानते हैं या नहीं। मैं कसके मानता हुँ। आर्थिक क्रांति का परिभाषा हुवा लगातार २०-३० साल तक नेपालमें आर्थिक वृद्धिका दर दो अंको का होना। डबल डिजिट ग्रोथ जिसे कहते हैं अंग्रेजी में। तो नेपालमें आर्थिक क्रांति अभी चाहिए कि ५० साल बाद आने से भी काम चलेगा? अभी नहीं ३०-४० साल पहले होना था। बहुत समय जाया गया। तो आर्थिक क्रांति की जल्दबाजी अगर है देशको तो देशको सच्चा संघीयता देना होगा। जिस तरह पंचायती व्यवस्था और राजतन्त्र लोकतंत्र के विरोधी शक्ति थे उसी तरह कांग्रेस और कम्युनिस्ट सच्चा संघीयता विरोधी शक्ति हैं। उनके विरुद्ध सिर्फ मोर्चाबंदी करने से काम नहीं चलेगा। एक तीसरी पार्टी की निर्माण करनी होगी। जनतासे आन्दोलन कर उनसे अंतिम बलिदान मांगने वाले नेता लोगो को समझना होगा कि जनता अंतिम बलिदान देती है तो नेता लोगो को कमसेकम चाहिए कि वो अपना गृह कार्य करे। आजके सन्दर्भमें वो गृह कार्य पार्टी एकीकरण और संगठन निर्माण एवं विस्तार ही है। आप कितना भी आंदोलन कर लिजिए लेकिन संसद में अंक गणित नहीं जुटा पाते हैं तो आपकी जो एजेंडा है वो पिछे पड़ी रहेगी। यानि कि अगला स्थानीय, प्रादेशिक और संसदीय चुनाव को डेडलाइन मानके चलना होगा। चुनाव से कमसेकम एक साल पहले पार्टी एकीकरण का काम ख़त्म हो जाना चाहिए। चुनावमें बुरी तरह हार जाने के दो महिना बाद पार्टी एकीकरण करना न करना बराबर होगा। सिर्फ मधेसी को नहीं जोड़िए संविधान संसोधन से। अंक गणित फिका पड़ जाता है। सिर्फ जनजाति को नहीं जोड़िए। अंक गणित दो तिहाई पहुँच जाती है लेकिन राजनीतिक चेतना उस कदर नहीं है अभी तक। संविधान संसोधन को सच्चा संघीयता से जोड़िए और सच्चा संघीयता को आर्थिक क्रांति से ताकि शत प्रतिशत नेपाली जनता को टारगेट किया जा सके। आर्थिक क्रांति तो सभी को चाहिए। बाहुन क्षेत्री को भी चाहिए। सरकारी जागीर करने वाले बाहुन क्षेत्री सिर्फ कुछ लाख होंगे। बाँकी में अधिकांश तो गरीब ही तो हैं। सरकारी जागीर करने वाले बहुसंख्यक भी गरीब हैं। सामाजिक न्याय का मुद्दा उठाना बहुत जरुरी है। लेकिन उससे मुख्य रूपसे दमजम को सम्बोधित किया जा सकता है।

पार्टी एकीकरण का समयतालिका

कुछ साल के प्रयास के बाद उपेन्द्र यादव और बाबुराम तो मिल गए। मोर्चा नहीं बनाया। पार्टी एकीकरण की। मोर्चा बनाने की बात बेतुक बात है। मुद्दा कठिन हो तो मोर्चाबंदी से काम नहीं चलेगा। फोरम और नया शक्ति एक हो गए। अब अगला कदम है सपा और राजपा एक हो जायें। नया शक्ति का फोरम में एक हो जाने से अंक गणित में बहुत फर्क नहीं हुवा है। पहले जो ५०-५० था उसमें थोड़ा १९/२० हुवा है। सपा और राजपा एक होने के बाद शायद तीसरा नम्बर आता है सीके राउतका। अकेले वो चुनाव लड़ेंगे तो जाने नजाने केपी ओली द्वारा प्रयोग हो जाएंगे। सपा और राजपा का भोट काटेंगे, खुद मधेसमें ५% या उससे कम पर अटक जाएंगे। सपा और राजपा का भोट काट कर मधेसमें कांग्रेस कम्युनिस्ट के जीतका मार्ग प्रशस्त करेंगे। वो नहीं होने देना है। मुद्दा जब हुबहु मिलता हो तो अलग पार्टी चलाने का मतलब क्या? अन्त में शायद हृदयेश त्रिपाठी आ सकेंगे। १०-१२ महिने में जब प्रचंड प्रधान मंत्री बनेंगे तो हृदयेश त्रिपाठी का उस मंत्री मंडल में आने की संभावना है। मंत्री बनना बड़ी बात नहीं। वो जरुरी चीज नहीं है। लेकिन ओली से अलग चल कर अगर प्रचंड संविधान संसोधन का मुद्दा आगे बढ़ाते हैं जैसा कि सोंचा जा रहा है तो हृदयेश के उस प्रयोग के लिए भी थोड़ा समय दे दिया जाए। उपेन्द्र यादव भी तो उसी आशा में मंत्रीमंडल में बैठे हुवे हैं। पुर्व माओवादी वाले भले संविधान संसोधन की बात करे पुर्व एमाले वाले जो कि बहुमत में हैं वो रोड़ा अड़कायेंगे ऐसा अनुमान किया जाता है। तो प्रयोग असफल होने के बाद हृदयेश त्रिपाठी या तो नया झंडा ढूढ़ेंगे या तो फिर उनकी राजनीति समाप्त हो जाएगी। छोटेमोटे कई जनजाति पार्टियां हैं। उन्हें भी मुद्दा के आधार पर एक एक कर के एकीकरण करते हुवे आगे बढ़ना होगा।

पार्टी एकीकरण का अंकगणित

फोरम और राजपा ५०-५० पर थे। अब नया शक्ति से मिलने के बाद शायद सपा को थोड़ा और बड़ा मानना होगा। अब शायद ५५-४५ पर बात हो। पार्टी एकीकरण की बात शुरू होते तक सीके राउत के जनमत पार्टी की सदस्य संख्या कितनी पहुँचती है। वो देखना होगा। अगर पार्टी सदस्य संख्या एक लाख से उपर ले जाते हैं तो सपा प्लस राजपा को २/३ और जनमत पार्टी को एक तिहाई मान कर एकीकरण किया जा सकेगा। सीके राउत को पार्टी में प्रथम पाँच में एक पद देना होगा। हृदयेश त्रिपाठी को तो कपिलवस्तु या रुपन्देही या परसा महोत्तरी कहीं एक सीट देना होगा। उनके कुछ साथीयों को पश्चिम तराई में टिकट। हृदयेश संसदीय मनस्थिति ले के चलते हैं। हृदयेश को पार्टी भितर पद अंक गणित नहीं केमिस्ट्री और हिस्ट्री के आधार पर दिया जाना जरुरी है। एक सम्मानजनक पद।

चुनाव से एक साल पहले पार्टी एकीकरण का काम ख़त्म कर लेने के बाद एक नजर कांग्रेस पार्टी पर भी डालने की जरुरत पड़ सकती है। लेकिन पहले मुद्दा की बात होगी। संविधान संसोधन के मुद्दे पर कांग्रेस एक ज्वॉइंट मेनिफेस्टो पर अगर तैयार हो जाती है तो उसको मधेसमें २५% और पहाड़में ५०% सीट देकर एक मोर्चा बनाया जा सकता है। लगभग दो तिहाई पर रही नेकपा को फेकना है तो उतना करना पड़ सकता है।

पार्टी एकीकरण की केमिस्ट्री 

केमिस्ट्री में प्रथम बात तो मुद्दा ही है। मुद्दा स्पष्ट है। लेकिन विभिन्न नेताओं के पर्सनालिटी की भी बात आ जाती है। पार्टीका अध्यक्ष कौन बने? ये केमिस्ट्री की बात नहीं है। ये अंक गणित की बात है। लेकिन इसको केमिस्ट्री की बात बना कर अभी तक पार्टी एकीकरण को न होने देने का काम किया गया है। उपेन्द्र यादव को लगता है मुझे पार्टी अध्यक्ष मानिए दो मिनट में पार्टी एकीकरण हो जाएगा। राजेन्द्र महतो को लगता है उपेन्द्रजी अध्यक्ष मंडल में एक सीट आप भी ले लिजिए। ऐसे में मुद्दा गौण हो जाता है। जो ओली संविधान संसोधन का विरोध कर के ही चुनाव जिता है उसी ओली को अनुनय विनय करने पहुँच जाते हैं कि संविधान संसोधन करो।

आपको पार्टी अध्यक्ष बनना है तो व्यापक संगठन विस्तार करिए ताकि ज्यादा से ज्यादा महाधिवेशन प्रतिनिधि आपको मत दें। और उस अंक गणित के आधार पर बनिए पार्टी अध्यक्ष। लेकिन पार्टी अध्यक्षता सिर्फ अंक गणित की बात नहीं है। पार्टी के अंदर एक ऐसी राजनीतिक संस्कृति होनी चाहिए की नेतृत्व परामर्श खोजने वाली हो अर्थात कंसल्टेटिव (consultative) . निर्णय करिए व्यापक छलफल के बाद। पार्टी  पदाधिकारी, पोलिटब्युरो सदस्य, केन्द्रीय समिति को लगे कि सभी बड़े छोटे निर्णय में ज्यादा से ज्यादा सहभागिता रहती है।

अंक गणित के आधार पर भले ही पार्टी अध्यक्ष उपेन्द्र यादव हो जाएँ लेकिन पार्टी नेतृत्व का स्टाइल राजपा के अध्यक्ष मंडल टाइप का ही होना होगा। व्यापक विचार विमर्श के आधार पर निर्णय की संस्कृति अपनानी होगी। इसके लिए पार्टी के शत प्रतिशत केन्द्रीय सदस्य और पदाधिकारी निर्वाचित होने की व्यवस्था की जा सकती है। पार्टी के भितर भी तो आरक्षण चलेगी। जहाँ दलित पदाधिकारी चाहिए वहाँ सिर्फ दलित उम्मेदवारी की नियम बनाई जा सकती है।

एकीकृत पार्टीका अंतिम नाम जनता पार्टी या नेपाल जनता पार्टी कर सकते हैं।

मुद्दा के प्रति वफ़ादारी

सामाजिक न्याय की बात करने वाले पार्टी और नेतागण वास्तव में मुद्दा के प्रति वफादार हैं तो पार्टी एकीकरण के महत्व को समझेंगे और अगली चुनाव के लिए उसे अपरिहार्य मानेंगे। जनता से मैंडेट लाइए और खुद संविधान संसोधन करिए।

एकीकृत पार्टी ले काठमाण्डु उपत्यका को १० को १० सीट ताकन सक्छ। राजेन्द्र श्रेष्ठ कीर्तिपुर बाट सांसद बन्छन।

Thursday, July 18, 2019

Federalism: Unfinished Business In Nepal



The republic has been established, a basic democracy has been established, but the federalism in Nepal is in name only. Federalism in Nepal today feels like democracy in 1988. It is unfinished business. A cosmetic federalism has been enshrined in the constitution, but even that limited federalism is thwarted by the state in practice every step of the way.

The Nepali Congress that held sway over the country from 1990 to 2005 and the Nepal Communist Party that has become the new status quo both are inherently anti-federalist forces. Their commitment to federalism can be compared to the commitment of the royalist party RPP to democracy. It is in name only. They never wanted it, and so worked in tandem to dilute it as much as possible. The fascist suppression of the Madhesi uprising after the unfair constitution was promulgated is a wound in history that is still gaping. The NC and the NCP are the very reason Nepal has been denied genuine federalism. Only when they are downsized into oblivion will Nepal see federalism the way it was meant to be.

The party that is in the best position to lead Nepal to that promised federalism right now is the Samajwadi Party that was formed when Upendra Yadav and Baburam Bhattarai joined forces. It also has illustrious leaders like Ashok Rai and Rajendra Shrestha. Other parties with similar commitments to social justice have to do the math and realize it is in unification with the Samajwadi Party that victory lies. The immediate candidates for unification are the Mahanth Thakur led Rashtriya Janata Party, the CK Raut led Janmat Party and the independent political group led by Hridayesh Tripathy. They all are mass-based. There are also smaller parties, many of them Janajati, that are ripe candidates for unification. If this unification can be brought about over the next two years, the party that emerges will be in a good position to sweep the 22 districts in the Terai. The magic of doing that is that then you force the NC and the NCP to compete with each other in the Pahad. The Samajwadi Party's 10 state proposal, explained well, will see it do well also in the Pahad among the Janajati groups.

It would be unrealistic to think the NC and the NCP might get wiped out. But if they are only sufficiently downsized that will force them to change tack. They might then support the constitutional amendments that will give Nepal genuine federalism.

Before the leaders ask the people for sacrifice, they should be willing to do their own internal homework. For the federalists in Nepal, that homework is the work of party unification.


Friday, July 05, 2019

सपा, राजपा, जपा र त्रिपा को एकीकरण

उपेंद्र यादव र बाबुराम वाला समाजवादी पार्टी, राजेंद्र महतो र महंथ ठाकुर वाला राष्ट्रिय जनता पार्टी, सीके राउत को जनमत पार्टी, र हृदयेश त्रिपाठी। यी चार एउटै झण्डा मुनि आउनु बड़ा जरुरी छ। उपेंद्र र बाबुराम त आइपुगे। वर्षौं प्रयास गरे। बल्ल आइपुगे। समय लाग्दो रहेछ त।

अर्को कदम हो समाजवादी पार्टी र राष्ट्रिय जनता पार्टी को एकीकरण। यो ५०-५० फोर्मुला मा गर्दा भइहाल्छ। नाम के राख्ने? त्यो सानो समस्या हो। पार्टी को पोलिटब्युरो भने बलियो हुने भो।

अहिले सीके राउत संगठन विस्तार गर्नमा सक्रिय छन। एक डेढ़ वर्ष त्यसकालागि समय दिन पर्छ। तर त्यसपछि सपा र राजपा एक गरेर बनेको पार्टीले सीके सँग पनि वार्ता थाल्नुपर्छ।

हृदयेश त्रिपाठी सँग एकीकरण गर्न सजिलो छ। हृदयेश को चुनाव क्षेत्र यस्तो विचित्र को बनाइएको छ कि अब त्यहाँ ढाका टोपी लगाएर नै भोट माग्नुपर्ने अवस्था आइसक्यो। अँग्रेजी मा gerrymandering भन्छन। नेपालीमा शायद जेरी पकाएको भनिन्छ होला। हृदयेश कपिलवस्तु, पर्सा, महोत्तरी जहाँ बाट चुनाव लड़े पनि भो। महंथ ठाकुर सर्लाही बाट महोत्तरी पुगिसके। राजेंद्र महतो सर्लाही बाट जनकपुर पुगे। हृदयेश ले नवलपरासी छोड़ने अब। हृदयेश त्रिपाठी सँग एकीकरण गर्न उनलाई एउटा चुनाव क्षेत्र दिनुपर्ने हुन्छ। बस।

यी चार को एकीकरण सँग थुप्रै साना सना पार्टी छन तिनी सँग पनि एकीकरण गर्नुपर्ने हुन्छ।

देशले तेस्रो ध्रुव खोजेको अवस्था छ। पाटन मा मशाल जुलुस निस्किनु भनेको तख्तापलट।

महाकाली भारत लाई बेचेर केपी ओली ले आफ्नो लागि महल खड़ा गरे। भारत लाई गाली गरेर दुई तिहाई। दुई तिहाई गन्हाइ सक्यो। काठमाण्डु उपत्यका का जनता कम्युनिस्ट लाई मन पराउन छोड़ेको काँग्रेस लाई मन पराउन नसकेको अवस्थामा छन। These are gathering storms. आकाशमें बादल मंडरा रहे हैं।

तर नेता हरुले आतंरिक गृहकार्य त गर्नुपर्छ। एकीकरण नै त्यो गृहकार्य हो।