Monday, January 07, 2019

सीके राउत की गिरफ़्तारी नेपाल लोकतंत्र न होने का प्रमाण है

सीके राउत को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया है।



आप सीके राउत के विचारधारा से असहमत हो सकते हैं। लेकिन एक शांतिपुर्वक अपने बात रखनेवाले व्यक्ति को, शांतिपुर्वक संगठन निर्माण करने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार सिर्फ उस राजनीतिक व्यवस्थामें किया जा सकता है जो कि लोकतान्त्रिक नहीं है। ये मानव अधिकार का हनन है। जिस देशमें चुनाव हो वो लोकतंत्र है ऐसी बात नहीं है। लोकतंत्र होना नहोना मानव अधिकार से सम्बंधित बात है। चुनाव तो तानाशाह भी कराते हैं।

क़ानून के शासन का एक नियम है कि एक ही आरोप पर एक व्यक्ति को एक से ज्यादा बार मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता है। लेकिन नेपाल में कानुन का शासन है ही नहीं। पहली बार जब सीके राउतको गिरफ्तार किया गया तो नेपालके सर्वोच्च अदालत ने उन्हें रिहा करवाया। क्यो कि नेपालके संविधान में स्पष्ट लिखा गया है कि वाक स्वतंत्रता प्रत्येक नागरिक का अधिकार है।

लेकिन उसके बाद भी बार बार कइयों बार गिरफ़्तारी हुइ। ये मुसा बिरालो के खेल की तरह हो गया।लोकतंत्र का उपहास होता रहा है।

इस बार तो सर्वोच्च अदालत भी खेल में शामिल हो गया। इस से बड़ा मजाक क्या हो सकता है?

सीके का विश्लेषण सही है कि नेपालके भितर मधेसीको राजनीतिक समानता प्राप्त नहीं है। उस समस्याका समाधान फोरम राजपा वाले कहते हैं संघीयता है। सीके फरक विचार प्रस्तुत करते हैं। संघीयता है तो आ गया आपका संघीयता, तो फिर अब मधेसीको समानता क्यों नहीं मिला?

आप सीके के विचार से असहमत हो सकते हैं। और मैं हुँ। मेरा विचार है लक्ष्य होना चाहिए दक्षिण एशिया का राजनीतिक एकीकरण। मधेस अलग देश क्यों, सारे उपमहाद्वीपको ही एक देश बना दो।

लेकिन मैं सीके के विचार से असहमत हुँ इसका मतलब तो ये नहीं निकलता कि सीके को जेल में ठुँस दो। ये क्या हो रहा है ये? अप्रिल २००६ के १९ दिन के क्रांति में जो नेपाली शहीद हुए वो क्या इसी के लिए शहीद हुवे थे? मधेसी क्रांति १, २, ३, ४ में जो शहीद हुवे वो क्या इसी के लिए शहीद हुवे? नेपाल गणतंत्र के राजनेता क्या सबके सब नवराजा बन गए हैं?

बस भी करो ये तानाशाही।

सीके राउत की मैने आलोचना की है और इसी ब्लॉग पर की है। चुनाव के समय किया। आप इस ब्लॉग के पिछले पन्नों में जा के अभी देख सकते हैं। मैंने कहा है कि आप स्पेन के केटलोनिआ का उदाहरण देते हैं, स्कॉटलैंड का उदाहरण पेश करते हैं। लेकिन आप जिन लोगों की बाते करते हैं वो तो चुनाव लड़ के अपने अपने प्रांतो में सरकार बनाए बैठे हैं। आप क्यों नहीं पार्टी खोलते? आप क्यों नहीं चुनाव लड़ते? आप क्यों नहीं प्रान्तीय सरकार बनाने की सोंचते? महात्मा गांधी की भारतीय कांग्रेस पार्टी अंग्रेज शाषित भारत में चुनाव लड़ा करती थी, और प्रांतीय सरकार बनाया करती थी। आप चुनावी प्रक्रिया से अलगथलग रह के strategic, tactical गलतियाँ कर रहे हैं। ऐसा मैंने कहा है।

लेकिन कोइ अहिंसावादी राजनेता अगर strategic, tactical गलतियाँ करे तो उसे जेल में ठुँस दो, ये कौन सा न्याय है?

सन २००५-२००६ में अमेरिका में रह रहे दो तीन लाख से उपर नेपाली में मैं अकेला था जिसने फुल टाइम नेपालके लोकतान्त्रिक आंदोलन के लिए काम किया। जो नेपाली दो नंबर पर था समय देने के हिसाब से उसने मेरे तुलना में २०% भी समय नहीं दिया।

वो मेरा योगदान मैंने इसलिए नहीं किया कि ये दिन देखना पड़े।

एक राजनीतिक शाश्त्र के अध्येता और विद्यार्थी होते मैं ये देख रहा हुँ कि मधेस अलग देशकी संभावना के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा भु-राजनीति है। भारत और चीन दोनों ही नहीं चाहेंगे कि नेपाल एक से दो देश बन जाए। जबकि भारत चाहता है कि मधेसीको समानता मिले। नाकाबंदी ही कर दिया था।

अगर कोइ बर्लिन की दिवार ढहने साइज का भु-राजनीतिक भुकम्प आ जाये और भारत और चीन ही एक से १० देश बन जाए तो अलग बात है। उस परिस्थिति में मधेस अलग देश संभव है। लेकिन उसकी संभावना क्या है? बल्कि उलटे युरोप के १०-१२ देश एक देश बन जाना चाहते हैं।

लेकिन यहाँ बात भु-राजनीति की नहीं है। मुद्दा मानव अधिकार की है। आप किसी की वाक स्वतंत्रता हनन नहीं कर सकते। नेपाल में लोकतंत्र का उपहास बंद करिए। सीके को तुरन्त रिहा करिए। बन्दर का खेल नहीं लोकतंत्र। लोकतंत्र की अपनी मुल्य मान्यताएँ होती है।

नेपालके नेता लोग कहते रहते हैं विदेश में रह रहे लोग वापस आ जाओ। गया तो वापस सीके। क्या हालत कर के रखे हो? कुछ लोग होते हैं बौद्धिक रूप से प्रखर। कुछ संगठन में कुशल होते हैं। जैसे कि गिरिजा कोइराला संगठन में कुशल थे। लेकिन वो कोइ बौद्धिक लोग नहीं थे इस बात को वो खुद मानते थे। सीके दोनों में माहिर हैं। इस बात की कदर करो। देश के भविष्य की सोचो।

नेपालमा लोकतंत्र बाँदर को हात मा नरिवल?















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