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Friday, January 01, 2016

केजरीवाल, मोदी और दिल्ली

केजरीवाल जब पहली बार दिल्ली का मुख्य मंत्री बने उससे पहले मेरे राडार पर वो नहीं थे। लेकिन जब वो आए, I have to admit, it was a breath of fresh air. ये जो दुसरी बार जिते हैं, तो क्लियर मैंडेट है। स्मार्ट हैं, मेहनती हैं, साधारण पृष्ठभूमि के हैं, एक क्लीन इमेज है। दिल्ली के लिए एजेंडा भी अच्छा है।

लेकिन वो बार बार शिकायत करते आए हैं कि मैंने चुनाव जिता लेकिन मोदी काम नहीं करने दे रहे हैं। तो I have taken that with a grain of salt. मोदी के rear view mirror में केजरीवाल दिखते होंगे ऐसा नहीं लगता। एक बात होता है कि बड़ा आदमी से लफड़ा लो और अपना कद बढ़ाओ। Which is cheap.

तथ्य आखिर है क्या? मोदी तंग कर रहे हैं। ये बात मेरे को मानने को मन नहीं कर रहा था। या तो मोदी का मेरा जो इमेज है गलत है या वो केजरी को तंग नहीं कर रहे। तो बात क्या है आखिर?

तो आज मेरे को जवाब मिल गया। नया साल मुबारक। मोदी को भी केजरी को भी।


मेरे समझ में यहाँ क्या हो रहा है कि मोदी केजरी को तंग नहीं कर रहे। हो ये रहा है कि केजरी ये नहीं समझ रहे कि दिल्ली के पास statehood नहीं है। दिल्ली तो केंद्र शासित क्षेत्र है। तो केंद्र सरकार का मैंडेट तो मोदी को मिला हुवा है। पटना में नीतिश जो हैं या लखनऊ में अखिलेश दिल्ली में केजरी वो नहीं हैं।

दिल्ली को राज्य का दर्जा मिलना चाहिए कि नहीं? मिलना चाहिए तो रोडमैप क्या है?  वो तो बाद की बात है। या तो केजरी को एक रोडमैप प्रस्तुत करना होगा। कि मैं मानता हुँ दिल्ली को राज्य का दर्जा मिलना चाहिए और उसका नेतृत्व मैं करूँगा। तो वो एक रास्ता हुवा। दिल्ली के राज्य के दर्जा के बारे में मेरे को मालुम नहीं। मैंने अध्ययन नहीं किया है।  तो मैं मुद्दे पर न्यूट्रल भी हुँ और अगर केजरी ये बीड़ा उठाना चाहें तो रोडमैप क्या हो सकता है उस पर मैं आर्यभट का शुन्य हुँ। I don't know.

लेकिन अभी तक जो हल्ला करते आए हैं केजरी ये मोदी के प्रति unfair है और केजरी को अपरिपक्व दिखाता है। मोदी का केजरी के साथ न कोई पर्सनालिटी क्लैश है न कोई प्रतिस्प्रधा है। And it would be out of character for Modi to harass Kejri. मेरे समझ में हो क्या रहा है कि केजरी ये नहीं समझ रहे हैं कि दिल्ली केजरी शासित क्षेत्र नहीं है, संविधान जैसा बतला रहा है। दिल्ली केंद्र शासित क्षेत्र है। तो अपना jurisdiction समझने का प्रयास करें। मोदी ट्विटर पर जा के रोना धोना करें कि देखो इतना बड़ा मैंडेट ले के आया मैं लेकिन सी जिनपिंग मेरे को चिनिया सेना का बागडोर सम्हालने नहीं दे रहा है तो कैसा लगेगा? अरे यार चीन आप का jurisdiction नहीं।

कुछ होता है ग्रे जोन। ये केजरी के क्षेत्राधिकार में है कि केंद्र के स्पष्ट नहीं होता। तो वहाँ दोनों प्रतिस्प्रधा करेंगे कि मेरा है मेरा है, वो तो स्वाभाविक है।

केजरी को एक प्रॉपर चीफ मिनिस्टर बनना है तो जाओ पंजाब जाओ। सुनते हैं वहां भी आप का अच्छा है। या दिल्ली को राज्य का दर्जा दिलाने का रोडमैप लाओ और जनता के पास जाओ। बीजेपी ने तो स्पष्ट कह ही दिया नहीं। कि हम नहीं चाहते दिल्ली अलग राज्य हो।

सबसे प्रमुख बात है मोदी पर बार बार जो घटिया और बहुत ही पर्सनल किस्म के अटैक जो हो रहे हैं उससे भारत के छवि पर असर पर रहा है। मैंने हाल ही में वाशिंगटन पोस्ट में एक आर्टिकल पढ़ा जिसमें केजरी को क्वोट किया गया है, कि मोदी psychopath हैं। ये तो लोकतंत्र की भाषा नहीं। भारत के छवि पर असर पड़ता है। और वैसे भी मोदी की कोई गलती मैं देख नहीं रहा। CBI ने खुद एक्शन लिया। गलत लिया तो वकील हायर करो। राजनीतिक मुद्दा है तो राजनीतिक भाषा बोलो।

Kejriwal is promising, but he should not punch above his weight, especially in unfair ways. और वैसे भी economic growth के मुद्दे पर केजरी कुछ नहीं मोदी के सामने। न विज़न देख रहा हुँ न एक्शन।


नया नेपाली प्रधान मंत्री पहिला भारत भ्रमण जानु पर्ने कारण के हो?

Geopolitics ---- भूराजनीति। Physics मा gravity जस्तो हो, राजनीति मा geopolitics त्यस्तै त्यस्तै हो। किनभने हामी जसलाई राजनीति भन्ने गर्छौं त्यो आखिर यो एउटा ग्रह को surface मा हुने गरेको कुरा हो। हामी Gravity भने पछि उत्तेजित हुन्छौं कि त्यसलाई प्रकृति को एउटा नियम भनेर स्वीकार गर्छौं र बरु त्यसको सदुपयोग गर्ने प्रयास गर्छौं? Satellite प्रयोग नगर्ने आज एउटा देश छैन। त्यो Newton ले gravity को नियम को गणित नदिएको भए संभव हुने थिएन।

भारत ले पनि चीन, रूस, अमेरिका सबै को Geopolitics मनन गर्दै अगाडि बढ्नु पर्ने हुन्छ। No country is too big to not take into account geopolitics. Just like no object is too big to not take into account the law of gravity. पृथ्वी ले चन्द्रमा तान्छ भने चन्द्रमा ले पनि पृथ्वी तान्छ। समुद्र मा त्यत्रो ज्वारभाटा हरु आइरहेको हुन्छ। म बसेको ठाउँ नजिक एउटा नदी छ। कहिले पानी उत्तर बाट दक्षिण बग्छ कहिले त्यसै नदी मा दक्षिण बाट उत्तर। चन्द्रमा ले तानेको।

भारत र नेपाल बीच साइज को कुरा मात्र होइन। साइज हो तर नेपाल भु होइन भारत परिवेष्टित छ। यहाँ सम्म कि नेपाल बाट चीन पुग्ने सबैभन्दा राम्रो बाटो पनि भारतको बाटो हो। जनकपुर-पटना-कोलकाता-कुन्मिंग। भने पछि नेपाल को तीन तिर होइन चार तिर नै भारत छ भने पनि हुन्छ। त्यो भुगोल हो। बदल्न नसकिने। You can pick your friends, but not your neighbors. But what if your neighbor is your best friend? How is that a bad situation?

साइज को पनि कुरा छ। भारत जुपिटर जस्तो, नेपाल जुपिटर को चन्द्रमा जस्तो। जुपिटर को एउटा चन्द्रमा मा सतह मा बरफ छ तर त्यो बरफ मुनि पानी छ। बरफ लाई पानी बनाउने गर्मी कहाँ बाट आयो। सुर्य बाट होइन। पानी चाहिएको कुरा। सुर्य अमेरिका हो। सुर्य टाढा छ। १०-१५ वर्ष मा नेपाली अमेरिका जान छोड्छ भारत जान्छ, त्यही प्रयोजन का लागि। भारतीय कंपनी नै नेपाल आइपुग्छ। भारतीय कंपनी नेपाल आएर नेपाली न अमेरिका न भारत जान पर्नु जुपिटर को एउटा चन्द्रमा मा पानी हो। पानी चाहिएको। त्यस चन्द्रमा मा पानी किन छ, बरफ किन पानी बन्यो भन्दा जुपिटर को गुरुत्वाकर्षण ले कहिले यता कहिले उता तानेर। चन्द्रमा सधैं समान दुरी मा रहँदैन। अनि त्यस यता उता बाट गर्मी उत्पन्न हुन्छ। भारत ले कहिले त्रिभुवन र बीपी त कहिले गणेशमान त कहिले गिरिजा-प्रचंड त कहिले मधेस आंदोलन को समर्थन गरेको त्यो तानतुन हो। त्यसले पानी दिन्छ।

तर छिमेकी र साइज को कुरा मात्र होइन। नेपाल र भारत बीच को बॉर्डर ---- दुनिया मा अर्को छैन यस्तो। भने पछि नेपाल भारत बॉर्डर लाई अमेरिका कनाडा को जस्तो बनाउनु पर्ने हो त? ती दुई पनि मित्र राष्ट्र नै हो। त्यो बड़ो आत्म घृणा पुर्ण विचार भयो। हुनुपर्ने त के हो भन्दा २२ औं शताब्दी सम्म मा दुनिया को प्रत्येक बॉर्डर नेपाल भारत जस्तो बनाउन बरु नेपाल भारत ले मिलेर पहल गर्ने। किनभने यो दुनिया को सबैभन्दा राम्रो बॉर्डर हो। टाँसिएर बसेको ले मात्र होइन। टाँसिएर त प्रत्येक देश बसेको छ। भने पछि नेपाल र भारत सँग के छ? त्यो के हो संपत्ति? संस्कृति, भाषा, धर्म। रोटीबेटी। त्यो त एसेट हो। सऊदी अरब ले तेल को खानी हरु लाई असेट भन्छ कि समस्या?

नया नेपाली प्रधान मंत्री पहिला भारत भ्रमण जानु पर्ने कारण के हो? टोल को गुंडा लाई हफ्ता बुझाए जस्तो यो रंगदारी सिस्टम होइन। नया नेपाली प्रधान मंत्री पहिला भारत भ्रमण जानु पर्ने कारण के हो भन्ने कुरा चीन लाई पनि थाहा छ, अमेरिका बेलायत सब लाई थाहा छ। कसैले त्यसलाई समस्या नै मान्दैन। भारत नजाउ पहिला हाम्रो देश आउ भनेर एउटा कुनै देशले इच्छा नै गरेको छैन।

नया नेपाली प्रधान मंत्री पहिला भारत भ्रमण जानु पर्ने कारण के हो?

अमेरिका ले एउटा Voyager पठायो। त्यो प्लूटो काटेर अझ उता उता पुगिसक्यो।


नेपालको नया प्रधान मंत्री विश्व भ्रमण मा निस्कनु भनेको प्लुटो पुग्ने प्रयास हो। Voyager ले बाटो मा पर्ने प्रत्येक ग्रह लाई एक चक्कर लगाएर अनि त्यस बाट गुलेली ले जस्तो थप गति लिँदै अगाडि बढेको। Slingshot effect भनिन्छ।





नया नेपाली प्रधान मंत्री पहिला भारत भ्रमण जानु पर्ने कारण भारत को इगो होइन। कारण भारत हुँदै होइन। Voyager जुपिटर को नजिक पुग्यो पुगेन त्यसले जुपिटर लाई के फरक पार्छ? नेपाल विश्व सम्म लाने सबैभन्दा राम्रो बाटो भारत को बाटो हो। त्यसै गरी विश्व लाई नेपाल ल्याउने सबैभन्दा राम्रो बाटो पनि भारत मार्फ़त नै हो। त्यो वैज्ञानिक यथार्थ हो। नेपालमा ४०,००० मेगावाट बिजली निकाल्न चाहिने पैसा विश्व बाजार मा छ। तर त्यो पैसा आउने भारत को बाटो नै हो। घर गिरवी राखेर लोन लिन्छ मान्छे ले। नेपाल ले भारत गिरवी राख्ने हो।

Gravity ले हामी लाई तीन मीटर माथि उफ्रिन दिँदैन। तर त्यो gravity बुझ्ने सानो घर भन्दा पनि सानो अंतरिक्ष यान मंगल ग्रह पुग्न सक्छ। नया नेपाली प्रधान मंत्री पहिला भारत भ्रमण जानु पर्ने कारण के हो? यो नबुझी नेपाल मा गरीबी समाप्त हुनु संभव छैन।

मोदी को विश्व भ्रमण त्यो विश्व भ्रमण भन्दा पनि जहाँ जहाँ भारतीय छन त्यो खोजी खोजी गएको हो। नेपालको प्रधान मंत्री ले त्यसरी नेपाली खोज्दै पुग्नु पर्ने ठाउँ भारत मा छ। दिल्ली मात्र दुनिया होइन। काठमाण्डु बाट दिल्ली बाट नेपाली बहुल शहर र राज्य हरु जाउ। मोदी ले जस्तो गर्ने हो भने।

Injured Madhesi leader Rajendra Mahato airlifted to Delhi for better treatment
Nepal's top Madhesi leader Rajendra Mahato, who had suffered injuries in a clash with police during a sit-in last week, was today airlifted to Delhi for further treatment as his condition did not improve. ....... The 57-year-old Chairman of Sadbhawana Party, one of the four Madhes-based political parties that have launched an agitation in southern Nepal under the banner of United Democratic Madhesi Front, has left for New Delhi for medical treatment, according to Vice president of the party ....... The senior Madhesi leader was initially airlifted from Dharan, where he was undergoing treatment for the past week, to the capital Kathmandu, from where he was again airlifted to Delhi. ...... The leader, who had sustained injuries including on head during a clash between the largely Indian-origin Madhesis and police at Biratnagar-Jogabani border check-point on December 26, was flown to Delhi as his health condition could not improve much even after staying in the ICU for some time ...... The senior Madhesi leader had spent over a week while undergoing treatment at a local hospital in Biratnagar and Dharan-based B P Koirala Institute of Health Sciences. ...... Mahato's blood pressure and sugar level were also found to be higher than normal. ...... He had fallen unconscious for some time while undergoing treatment
India, not China, could be first stop: Nepal PM KP Sharma Oli to Narendra Modi
Nepal's Prime Minister KP Sharma Oli on Thursday indicated that India, and not China, could be his first stop abroad as the premier of the Himalayan state in keeping with a longstanding tradition, but only after his country makes key amendments to its Constitution to meet the demands of the agitating Madhesis, an issue that has soured relations between Nepal and India since August....... during the 20-minute conversation, Modi invited Oli to visit India and Oli accepted the invitation, saying he will pay an official visit to India soon after the situation is normalised. ...... Nepal's deputy prime minister Kamal Thapa had on Tuesday announced that Oli would visit China next month on his first trip abroad as PM, but officials in Kathmandu said that Oli will visit India before undertaking his trip to Beijing. .......

India is of the opinion that no visit abroad by Oli will be productive unless his government walks the talk and amends the Constitution to meet the grievances of the agitating Madhesis during the ongoing session of Parliament.

....... A visit to China may have allowed the Nepalese PM to play the Beijing card against India, but would have done little to address the grievances of the Madhesis and subsequent agitation
Nepal PM KP Sharma Oli to visit China in likely snub to India?
Amid hiccups in Indo-Nepal ties over the Madhesi issue, Nepal's Prime Minister KP Sharma Oli is set to embark on his maiden China visit soon, ignoring the usual practice of visiting India first by a new premier. ...... "PM Oli will visit China in the beginning of the New Year 2016 during which many agreements will be signed," Deputy Prime Minister Kamal Thapa said. .....

Only Pushpa Kamal Dahal 'Prachanda' had rubbed India the wrong way when he chose China as the first destination of his foreign visit after taking over as Nepal's prime minister and attended the Beijing Olympics 2008.

....... India has been rather cold to Prachanda over the years and sees him as someone keen on pushing Nepal closer to China. ....... Nepal has already signed an MoU with Petro China to import all kinds of fuel, ending Indian Oil Corporation's long-held monopoly on the Nepalese fuel market. Nepal has been buying over USD 1.3 billion of gasoline from Indian Oil annually.
China visit by KP Sharma Oli won't address Madhesi concerns; India makes its stand clear
The announcement by Nepal's deputy PM Kamal Thapa that KP Sharma Oli may visit China on his first foreign trip as the prime minister next month may have caused some flutter, but New Delhi is of the opinion that no visit abroad will be productive unless his government amends the Constitution during the ongoing Parliament session to address the grievances of the agitating Madhesis.


How many moons does Mercury have?
Jupiter and Saturn have 67 and 62 officially named moons, respectively ...... even the recently-demoted dwarf planet Pluto has five confirmed moons – Charon, Nix, Hydra, Kerberos and Styx. And even asteroids like 243 Ida may have satellites orbiting them (in this case, Dactyl)...... It is also believed that Neptune's largest moon, Triton, was once a Trans-Neptunian Object (TNO) that was ejected from the Kuiper Belt and then captured by Neptune's gravity....... there is the possibility that moons are the result of massive collisions that caused a planet to ejected some of their material into space, which then coalesced to form a satellite in orbit. This is widely thought to be how the moon was formed, when a Mars-sized object (often referred to as Theia) collided with it 4.5 billion years ago...... A perfect example of this is Earth, which is able to hold the moon in its orbit, in the face of the overwhelming gravity of the Sun, because it orbits within Earth's Hill Sphere. Alas, this is why Mercury has no moons of its own. Categorically, it is not in a position to form one, capture one, or acquire one from material ejected into orbit ..... Given Mercury's small size (the smallest planet in the ) and its proximity to the Sun, it's gravity is too weak (and it's Hill Sphere too small) to retain a natural satellite. Basically, if a large object were to approach Mercury today, to the point that it actually entered its Hill Sphere, it would likely be snatched up by the Sun's gravity instead.
No. 10 Solving the lithium mystery
In the aftermath of the Big Bang, hydrogen, helium and lithium were the only three stable elements to form. Yet older stars have lithium abundances of only a third of what the Big Bang predicts. Was our understanding of the birth of the elements after the Big Bang wrong, or was something else going on inside these stars? ..... The interior structure of Sun-like stars is divided into three sections: a core many millions of degrees hot, a radiative layer above the core where energy is transported by radiation, and a turbulent convective layer where energy is transported by rising currents. The Trieste group found that in the process of their formation, stars experienced a great deal of mixing between their different interior zones and currents would drag lithium down beneath the convective layer, into the high temperatures of the radiative layer where the lithium was destroyed. So the lithium mystery was solved: the stars had digested almost all of it.
Postal service celebrates Pluto exploration and more



India, not China, could be first stop: Nepal PM KP Sharma Oli to Narendra Modi
Must Solve Madhesi Unrest Through Consensus, Modi Tells Nepal PM Oli
On the last day of a tumultuous year in India-Nepal ties, Prime Minister Narendra Modi spoke to his Nepalese counterpart KP Oli and impressed upon him the need to evolve a solution based on ‘sahmati’ (consensus) to the problems confronting the Himalayan nation and even reportedly invited him to India. ..... There were more details from the Nepalese side — with Oli’s aides claiming that the call was made by Modi himself. ..... The short Indian statement was a reflection of the priorities of New Delhi — which is to push both sides, Kathmandu and the Madhesis, to come to the table and reach an understanding over the passage of Constitutional amendments. This was not the highlight at least in the Nepalese media, which touted that Oli had raised the issue of disruption in supplies from India. ...... The 20-minute phone call came in the backdrop of recent talk of Oli travelling to China on his first foreign visit. Except for Maoist chief Prachanda when he became the PM, all other Nepali premiers had made their giant southern neighbour their first foreign destination. As per the Nepalese side, Modi invited Oli to visit India at his earliest convenience. However, Oli reportedly told Modi he will only visit India after restrictions at the border ease up. ..... While it’s clear that China will not be able to supplant India on oil supply due to geographic reasons, Kathmandu continues to prop up Beijing as was demonstrated by the recent week-long visit by the Nepalese Foreign Minister.

Sunday, November 08, 2015

भारत ले मधेस होइन भारत का लागि घोषित नाकाबंदी गर्नुपर्छ, १००% टाइट

मधेस आंदोलन को राजनीतिक समस्या को राजनीतिक समाधान नखोजेर यो जुन finger pointing गर्ने काम भएको छ, त्यो निंदनीय छ। तानाशाही ढंग ले जसरी ४० बढ़ी मधेसी को हत्या गरियो, त्यस लाई हेग मा लाने संभावना त छँदैछ। मधेस ले आफ्नै सदरमुकाम हरुमा विरोध प्रदर्शन गर्न नपाउने? यो भुमि हो कसको? मधेस ले काठमाण्डु लाई नाकाबंदी लगाउनु अगाडि दुई महिना सम्म काठमाण्डु ले मधेस लाई नाकाबंदी लगाएको हो। मान्छे लाई आफ्नै घरमा कैदी बनाएर राखेको एक महिना बढ़ी। बिर्सेको? हामी ले कमसेकम त्यसरी घर कैदी बनाएका छैनौं।

नाकाबंदी अझ टाइट गर्नुपर्छ। आंदोलन लाई छोट्याउनु छ भने नाकाबंदी अझ टाइट गर्नुपर्छ। क्रांति का नया नया कार्यक्रम हरु ल्याउनुपर्छ। यो आंदोलन त भर्खर शुरू हुँदैछ। नाकाबंदी मात्र भयो। अझ के के हुन्छ के के।

प्रत्येक मधेसी भारतीय हो। प्रशांत तामांग नेपाली हो। प्रत्येक मधेसी भारतीय हो। प्रत्येक मधेसीको जातीयता भारतीय हो। हो यो नाकाबंदी भारतीय ले लगाएको हो। प्रत्येक मधेसी भारतीय हो भने र दशगजा मा मधेसी बसेका छन भने नाकाबंदी आखिर लगायो कसले? भारतीय ले हो।

तर मधेसी भारतीय नागरिक होइन। भारत सरकार ले भारत को सोँच्नु पर्छ। सोँचेको पनि छ। मधेस आंदोलन सशस्त्र क्रांति मा गएर अल्झिएछ भने ३० लाख शरणार्थी बिहार र उत्तर पुग्दा सम्म भारत हात बाँधेर बस्ने? कि अहिले औपचारिक नाकाबंदी लगाउने। म भारत सरकार लाई आह्वान गर्छु। मधेसी सँग हातेमालो गर्दै औपचारिक नाकाबंदी लगाउ।

प्रचंड ले साइकिल चढेको फोटो पत्र पत्रिका मा न आएसम्म नाकाबंदी खुल्दैन।

भारत ले होइन भारतीय ले नाकाबंदी गरेको हो। प्रत्येक मधेसी भारतीय हो। प्रशांत तामांग नेपाली हो। प्रत्येक मधेसी भारतीय हो।



Sunday, September 27, 2015

While Modi Meets A Friend Of Mine



The strongest weapon to shift geopolitical balances isn’t nukes or missiles, it’s technology
Instead of worrying about the rise of China, we need to fear its fall; and while oil prices may oscillate over the next four or five years, the fossil-fuel industry is headed the way of the dinosaur. The global balance of power will shift as a result........... Solar and wind are now advancing on exponential curves. Every two years, for example, solar installation rates are doubling, and photovoltaic-module costs are falling by about 20 percent. Even without the subsidies that governments are phasing out, present costs of solar installations will, by 2022, halve, reducing returns on investments in homes, nationwide, to less than four years.

By 2030, solar power will be able to provide 100 percent of today’s energy needs; by 2035, it will seem almost free — just as cell-phone calls are today. .......

..... Exponential technologies are deceptive because they move very slowly at first, but one percent becomes two percent, which becomes four, eight, and sixteen; you get the idea. As futurist Ray Kurzweil says,

when an exponential technology is at one percent, you are halfway to 100 percent

, and that is where solar and wind energies are now. ........ For decades, manufacturing was flooding into China from the U.S. and Europe and fueling its growth. And then a combination of rising labor and shipping costs and automation began to change the economics of China manufacturing. Now, robots are about to tip the balance further....... China is aware of the advances in robotics and plans to take the lead in replacing humans with robots. Guangdong province is constructing the world’s first “zero-labor factor,” with 1,000 robots which do the jobs of 2,000 humans. It sees this as a solution to increasing labor costs. ...... The problem for China is that its robots are no more productive than their counterparts in the West are. They all work 24×7 without complaining or joining labor unions. They cost the same and consume the same amount of energy. Given the long shipping times and high transportation costs it no longer makes sense to send raw materials across the oceans to China to have them assembled into finished goods and shipped to the West. Manufacturing can once again become a local industry.......

What is now a trickle of manufacturing returning to the West will, within five to seven years, become a flood.

...... In conventional manufacturing, parts are produced by humans using power-driven machine tools, such as saws, lathes, milling machines, and drill presses, to physically remove material to obtain the shape desired. In digital manufacturing, parts are produced by melting successive layers of materials based on 3D models — adding materials rather than subtracting them. The “3D printers” that produce these use powered metal, droplets of plastic, and other materials — much like the toner cartridges that go into laser printers. 3D printers can already create physical mechanical devices, medical implants, jewelry, and even clothing. But these are slow, messy, and cumbersome — much like the first generations of inkjet printers were. This will change........ Late in the next decade, we will be 3D-printing buildings and electronics. These will eventually be as fast as today’s laser printers are. And don’t be surprised if by 2030, the industrial robots go on strike, waving placards saying “stop the 3D printers: they are taking our jobs away.” .... America will reinvent itself just as does every 30-40 years; it is, after all, leading the technology boom. And as we are already witnessing, Russia and China will stir up regional unrest to distract their restive populations; oil producers such as Venezuela will go bankrupt; the Middle East will become a cauldron of instability. Countries that have invested in educating their populations, built strong consumer economies, and have democratic institutions that can deal with social change will benefit — because their people will have had their basic needs met and can figure out how to take advantage of the advances in technology.

Vivek Wadhwa, me saying you are the smartest dude in Silicon Valley...

Posted by Paramendra Kumar Bhagat on Wednesday, October 7, 2015

नेपाल १० वर्ष भित्र मा विकसित देश बन्ने बाटो

राजनीतिक स्थिरता चाहिन्छ। चाहिने भनेको प्रत्यक्ष निर्वाचित राष्ट्रपति नै हो। तर आर्थिक क्रांति नबुझेका हरुले संविधान लेखे। मधेसी क्रांति ३ को न्यायपूर्ण निष्कर्ष बिना राजनीतिक स्थिरता आउँदैन। भारतीय पूँजी देश पस्ने नै मधेसको बाटो हो। विश्व पूँजी देश पस्ने भारत को बाटो हो। संविधान स्वागत नगर्ने निर्णय भारत को हो, अमेरिका र संयुक्त राष्ट्र संघ ले भारत ले जे गर्यो त्यही गर्छ। किनभने भारत विश्व शक्ति हो। अमेरिका लाई भारत को जरुरत विश्व को कुना कुनामा छ। ईरान मा अमेरिका ले गर्न नसक्ने भारत ले सक्छ।  भारत त्यो देश हो। जब कि अमेरिका को विदेश नीति को सबैभन्दा जटिल मुद्दा नै आज इरान हो। राजनीतिक समस्या को राजनीतिक समाधान खोज, आफै खोज --- भारत सरकार ले नेपाल सरकार लाई भनेको त्यति मात्र होइन? आफ्नो आंग को भैंसी नदेख्ने। चीन लाई भारत को जरुरत छ। लिपुलेक मा चीनले देखाइदियो त नेपाल लाई। यो चीन र भारत जुधाउने नसोंच, तिम्रो औकात छैन भनेर चीन र भारत ले मिलेर भन्दिए। जग्गा त के हो र? भारत ले जति लियो त्यति नै अर्को ठाउँ मा दियो। लैंड स्वाप भयो। मानसरोवर पुग्नु छ भारत लाई। नेपाल ले कर्णाली मा राजमार्ग बनाउन चाहँदैन त -- के गर्ने?

नेपाल मा ४०,००० मेगावाट विजुली उत्पादन गर्न चाहिने पैसा/पूँजी अहिले छ विश्व बाजार सँग। पूँजी को अभाव छैन। त्यो पूँजी न आएको नेपालको थर्ड क्लास राजनीति ले गर्दा। होइन भने नेपाल ले खोला र सुरक्षा बाहेक केही नदिने आधारमा १०-२० हजार मेगावाट का लागि अहिले नै एक दुई वर्ष भित्र मा सम्झौता हरु गर्न सक्छ। भारत र विश्व ले रोकेको छैन। नेपाल आफ्नो दुश्मन आफै हो। नेपाल को पोलिटिकल क्लास ले बाधा डालेको छ।

एकीकृत पार्टी: सबै समस्या को समाधान



Monday, September 21, 2015

In The News (105)

भारतको अर्को चेतावनीयुक्त विज्ञप्ति : नेपालको आपूर्तिमा असर हुने संकेत
आजको विज्ञप्तिपछि

भारत हुँदै नेपालमा हुने आपुर्तिमा समस्या हुन सक्ने अड्कल काटिएको छ । विज्ञप्तिमा तराईमा जारी तनावका कारण ढुवानी गर्ने कम्पनीहरुले असुरक्षित महसुस गरिएको रहेको ढुवानीमा अप्ठ्यारो भइरहेको गुनासो गरेको उल्लेख गरिएको छ । विज्ञप्तिमा संविधान जारी भएपछि पनि भारतीय सीमा क्षेत्रमा भइरहेको तनाव र हिंसात्मक घटनालाई लिएर भारत चिन्तित रहेको बताइएको छ ।

आफूले बारम्बार नेपालको राजनीतिक नेतृत्वलाई तनाव कम गर्न तत्काल कदम चाल्न आग्रह गरे पनि त्यसको वेवास्ता गरिएको उल्लेख छ । यदी समयमा नै हामीले भनेको सुनेको भए यस्तो गम्भिर परिस्थितिलाई रोक्न सकिन्थ्यो, विज्ञप्तिमा उल्लेख छ । भारतले विज्ञप्ति मार्फत तराईमा देखिएको समस्या राजनीतिक समस्या भएको भन्दै त्यसको समाधान बलले भन्दा पनि संवादबाट समाधान गर्नुपर्ने सुझाव दिएको छ । हामी अझै पनि नेपालको राजनीतिक नेतृत्वले अहिले देखिएको तनावको कारक तत्वलाई प्रभावकारी ढंगले समाधान गर्नेछ ।
संविधान जारी भएपनि भारतलगायतका अन्तराष्ट्रिय समुदायको समर्थन छैनः शुक्ला
शुक्लाले अबको दिनमा आन्दोलन फरक शैलीबाट जाने संकेत गरेका छन् । मंगलबार राजबिराजमा हुने मधेशी मोर्चामा आवद्ध पार्टी अध्यक्षहरुको बैठकले आन्दोलनको भावी रणनिति तय गर्ने उनले जानकारी दिए । मधेशीका ४ मूल मागहरु पुरा नभए सम्म आन्दोलन निरन्तर चलिरहने उनले जनाए । संविधानमा नागरिकताको बिषय मात्र संसोधित धएर आएको र बाकी मागहरु समानुपातीक समावेशी प्रतिनिधित्व, जनसंख्याको हिसाबमा जन प्रतिनिधिको ब्यावस्था र मधेशमा दुई प्रदेश नदिए सम्म आन्दोलन नरोकिने उनले बताए । ..... उनले

पूर्व झापा देखी पश्चिम महेन्द्र नगर सम्म मानव जंजिर बनाई मधेशी थारुको एकता देखाउने तयारी भईरहेको बताए । हुलाकी बाटोमा मानव सागर उतारने तयारी भैरहेको

शुक्लाले बताए ।
भारतीय मिडियाको विश्लेषण : नेपालको संविधान भारतमाथि ‘सानदार प्रतिघात’, वैद्यानिकतामाथि उठायो प्रश्न
नेपालमा संविधान जारी भएपछि भारतले त्यसको स्वागत नगरेको सन्देश दिएको अवस्थामा भारतीय मिडियाले अहिलेको अवस्थामा संविधान जारी हुनुलाई ‘भारतमाथि प्रतिघात’ को सज्ञा दिएका छन् । भारतीय सञ्चार माध्यम टाइम्स अफ इन्डियाले भारतले बराम्बार संविधान जारी गर्ने मिति सारेर भए पनि संविधानलाई सर्वस्वीकार्य बनाउन आग्रह गरेपनि नेपालले संविधान जारी गरेर भारतमाथि प्रतिघात गरेको जनाएको छ । .... नेपालको संविधानलाई ४० प्रतिशतभन्दा बढी जनताले अस्वीकार गरेको दाबी गर्दै यसको वैद्यानिकतामाथि प्रश्न समेत उठाएको छ । ‘अर्थपूर्ण रुपमा भारतले जारी गरेको विज्ञप्तिमा संविधानको स्वागत भन्दा पनि असन्तुष्टलाई समेट्न जोड दिएको छ’ ..... भारतले संविधानको स्वागत नगरेको अवस्थामा चीनले संविधानको स्वागत गर्नुलाई नेपाली नेतृत्वले प्रयोग गर्न सक्ने
गोरखामा संविधानको स्वागत बाबुराम भट्टराई समूहद्वारा बहिष्कार
एमाओवादीको प्रचण्ड विचार समूह र डा बाबुराम भट्टराई विचार समूहको गोरखामा छुट्टाछुट्टै पार्टी कार्यालय सञ्चालनमा छ । ..... गतवर्षदेखि एमाओवादी भट्टराई समूहले समानान्तर जिल्ला कमिटी गठन गरी छुट्टै कार्यालय सञ्चालनमा ल्याएको हो । जिल्ला कमिटी, तीन क्षेत्रमा क्षेत्रीय कमिटीका साथै गाउँ–गाउँमा पनि समानान्तरक गाउँ कमिटी गठन गरिसकेको छ ।


मधेसका चोक-चोकमा यसरी जल्यो संविधान (फोटोफिचर )



मान्य हुँदैन मण्डले राष्ट्रवादको यो नौलो संस्करण
यही सुशिल कोइराला, शेरवहादुर देउवा, कृष्ण सिटौला र भीम रावलहरु हुन जसले पहिलो संविधान सभावाट ग्यारह प्रदेशसम्म मान्ने प्रस्ताव स्वीकार गरेका थिए । त्यसमा तराईमधेशमा तीनवटा प्रदेशको खाका प्रस्तुत गरिएको थियो । तर आज तिनै अनुहारहरुले सत्ताको मदमा तराईमधेश शव्द पनि उच्चारण गर्न चाहन्न । ...... यस्तो अवस्थामा संयुक्त लोकतान्त्रिक मधेशी मोर्चाका परिपक्क नेताहरुले आफ्नो हुर्मत पनि गच्छेदार झै लिन्छ भन्ने कुरा बुझेर नै होला बालुवाटार नटेकेका हुन । ......

प्रधानमन्त्री सुशिल कोइराला भन्नु हुन्छ– ‘म पनि मधेशी हूँ ।’

यो सरासर गलत हो । भ्रामक हो । दुष्प्रचार हो । त्यसैले समस्याको जडो प्रधामंत्रीको जडतामा छ । राजनीतिक विश्लेषक सिके लालको शब्दमा मधेश र मधेशी शब्दले भौगोलिकताभन्दा त्यसको साँस्कृतिक र समाजिक परिवेशलाई बढी बुझाउछ । प्रम कोइराला सिन्धुली दुम्जाका वासी हुन । दुम्जा पहाडमा छ । मधेशमा होइन । पहाड र मधेशको आफ्नो छुट्टाछुट्टै समाजिक र साँस्कृतिक परिवेश छ । तर समग्रमा सवै नेपाली भएकोले पहाडी समुदाय मधेशमा वसोवास गर्न सक्छन भने मधेशी समुदाय पहाडमा । ...... दशकौदेखि मधेशमा वसोवास गरिरहेका पहाडी समुदायको संस्कृति मधेश र मधेशी जस्तो भएको छैन भने राजा रणवहादुर शाहको पालामा नै उपत्यका भित्रिएका मैथिल बाहुनहरुको विहेवारी अहिले पनि मैथिल वाहुनसंग मात्र हुन्छ । ...... कांग्रेस÷एमालेसंग नजिक लेखनदासहरुले सधै मधेशी र माओवादीलाई जातीय÷साम्प्रदायिक भनेर चित्रण गरेकोले उसका नेता, कार्यकर्ता तथा समर्थकहरु एकलकाटे भएका छन् । प्र.मं कोइराला पनि त्यसैमध्येका एक पात्र हुन । ..... अवको संघर्षको लक्ष्मण रेखा कोर्नै पर्छ । यस सम्वन्धमा डा. बाबुराम भट्टराईले अभिव्यक्त गरेको विचार नै पार्टीको आधिकारिक धारणा हो भन्ने बुझ्दा कुनै अतिशयोक्ति हुने छैन । यस सन्दर्भमा पार्टीले जारी गरेको प्रेस विज्ञप्ति आधिकारिक होइन चाहे त्यसमा प्रचण्ड र कृष्ण वहादुर महराको सहिछाप किन न होस् । किनभने फरक मत र असहमतिको आधारमा संविधान निर्माण गरेका एमाओवादीलाई अहिलेको विषम परिस्थितिमा खुशी हुनु स्वभाविक हो तर त्यसले विजयोत्सवसम्म पु¥याउदैन । जुलूस र दीपावली गर्नु त घातक हो । यो सरासर गैरमाक्र्सवादी सोच हो । ...... विगतको मण्डले राष्ट्रवादको यो नौलो संस्करण हो । .... माक्र्सले विकाश गरेको वर्गीय अवधारणा अनुसार शोषक र शोषित वीचको विभेदलाई लेनिनले जातीय उत्पीडनसंग जोडेर रुशमा समाजवादी क्रान्ति सम्पन्न गर्नु भएको थियो, जसलाई अक्टुवर क्रान्ति भनिन्छ । तर नेपालमा युगान्तकारी जनयुद्ध, जनआन्दोलन र मधेश विद्रोहले अढाई सय वर्षको राजतन्त्रको अन्त्य गरेपनि आन्तरिक राष्ट्रियता बलियो हुन नसकेको यथार्थ हो ।
भारतले फेरि किन बोलायो राजदूत रेलाई ?
भारतको इच्छा विपरित तीन दलले बहुमतले सविधान जारी गरेपछि मोदी सरकारमै असर परेको छ । विहारमा चुनावको रौनक बढेसँगै मधेशमा जारी आन्दोलन लिएर विहारका नेताहरु मोदी सरकारको खुलेर आलोचना गरेपछि नेपालको तराई मधेशमा भइरहेको आन्दोलन बारे थप जानकारी लिनका लागि नेपालका लागि भारतीय राजदूत रन्जित रे लाई दिल्ली बोलाएको हो । ......

विहार हुने चुनावलाई लिएर भारतीय सरकार तराई मधेशको आन्दोलन लिएर निकै चिन्तित देखिएको छ ।

.... तराई मधेशमा आन्दोलन गरिरहेका मधेशी नेताहरुले विहार, उत्तर प्रदेशका भारतीय संसद् तथा वरिष्ठ नेताहरुलाई भेटेर आन्दोलनको बारेमा जानकारी गराउनुको साथै ज्ञापनपत्रहरु पनि दिएका छन् । ती भारतीय नेताहरुले तराई मधेशमा भएको आन्दोलन लिएर मोदी सरकारलाई दवाव दिएका छन् । संसदमा कुरा उठाएका छन् । भारतीय संसदहरुले मधेशी नेताहरुको तर्फबाट प्रधानमन्त्री मोदीलाई ज्ञापनपत्र नै बुझाएका छन् । ...... भारतमा रहेका मधेशी समुदायका व्यक्तिहरुले त्यहाँ पनि आन्दोलन गरिरहेका छन् । संविधान जलाउनु देखि लिएर विभिन्न गतिविधिहरु गरिरहेका छन् त्यसले गर्दा पनि भारतीय सरकारमाथि दवाव बढेको हो । ......

विहारका मुख्य मन्त्री नितिशकुमारले मधेशको आन्दोलनलाई समाधान गर्न नसक्ने प्रधानमन्त्री मोदीले विहारलाई के नै दिनसक्छन् भन्दै चुनावी सभामा टिप्पणी गरेपछि भारतीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदीले मधेश अन्दोलनप्रति गम्भीर भएका छन् ।

Friday, August 21, 2015

Goit To Modi


जयकृष्ण गोइत द्वारा लिखित भारतीय प्रधानमन्त्री लाई खुल्ला पत्र

सम्माननीय प्रधानमन्त्री , श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी, भारत सरकार
मार्फत
महामहिम राजदूत
भारतीय राजदूतावास
लैनचौर, काठमाण्डौं ।
तिथिः ९ अगस्त २०१५

श्रीमान् ,

हम, नेपाल अधीनस्थ तराई(मधेश) के मूल निवासियों के सच्चे प्रतिनिधि और तराई(मधेश) में जारी मुक्ति आन्दोलन के नेता के रुप में आपको भारत–नेपाल “शान्ति एवं मैत्री” सन्धि – १९५० की धारा – ८ का नेपाल में दोहरा मापदण्ड के सन्दर्भ में अवगत कराना अपना कत्र्तव्य समझतें हैं और आपका ध्यान इस ओर आकृष्ट करना चाहते हैं कि नेपालियों(पहाडियों) द्वारा भारतीय भू–भाग को सम्मिलित दिखाकर “वृहत्तर(गे्रटर) नेपाल” के एकतरफा अभियान से अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को गुमराह किया जा रहा हैं और तराई(मधेश) को औपनिवेशिक उत्पीडन में ही रखने की हताशापूर्ण कोशिशें की जा रही हैं ।

इतिहास की नींव पर ही वत्र्तमान का निर्माण होता है । इतिहास का संबंध सिर्पm अतीत से नहीं हैं, उसका संबंध वत्र्तमान और भविष्य से भी है । नेपाल के पाठ्यक्रम और अकादमिक चर्चा के रूप में इतिहास की विषयवस्तुओं के अनुसार नेपाल अधीनस्थ मेची नदी से महाकाली नदी तक का ‘तराई(मधेश)’ किसी शाहवंशी राजा, महाराजा वा नेपाली(पहाडी)का विजित भू–भाग नहीं रहा बल्कि ब्रिटिश स्वार्थ को पूरा करने के सहयोग के बदले नेपाल को हस्तान्तरित किया गया भू–भाग है ।

अतः भारत–नेपाल ‘संधि–१९५०’ की धारा– ८ के आधार पर मेची से लेकर महाकाली तक मधेश के ऊपर रही नेपाली अधीनता पूर्णतः अनाधिकृत और अवैध है । मेची से लेकर महाकाली तक मधेश वस्तुतः स्वतन्त्र भूभाग है । तराई(मधेश) के मूल निवासी(मधेशी) भारत–नेपाल संधि–१९५० की धारा– ८ के अनुसार नेपाल के अधीनस्थ मेची से लेकर महाकाली तक के भू–भाग को ‘स्वतन्त्र तराई(मधेश)’ मानते है जबकि नेपाली(पहाडी) मधेशियों की ऐसी धारणना को नेपाल का विखण्डन मानते हंै ।

दूसरी ओर पहाडियों के अनुसार उसी संधि–१९५० की धारा– ८ के अनुसार भारत के अधीनस्थ तिष्टा नदी से लेकर मेची नदी तक और महाकाली नदी से लेकर सतलज नदी तक का भू–भाग वृहत्तर(गे्रटर) नेपाल का अंग है, मगर ऐसी मान्यता को भारत का विखण्डन नहीं माना जाता है । २९ जून, १९९७ को “वृहत्तर(गे्रटर) नेपाल” के सन्दर्भ में नेपाल के सुप्रसिद्ध इतिहासविद् योगी नरहरिनाथ, अधिवक्ता रामजी विष्ट, अधिवक्ता श्याम प्रसाद ढुंगेल, नेपाली कांगे्रस सुवर्ण के अध्यक्ष प्रह्लाद प्रसाईं हुमागाईं, ‘विशाल नेपाल’ साप्ताहिक के सम्पादक तथा प्रकाशक प्रकाश देवकोटा, राष्ट्रीय जनजागरण पार्टी के अध्यक्ष अशोक लाल श्रेष्ठ, स्वतन्त्र पत्रकार राधेश्याम लेकाली आदि ने मंत्रिपरिषद्, मंत्रिपरिषद् सचिवालय, सम्माननीय प्रधान मंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय, परराष्ट्र मंत्री, परराष्ट्र मंत्रायल और साथ ही संसद सचिवालय सिंहदरबार को परिवादी बनाकर सर्वोच्च अदालत काठमाण्डू में एक रिट(याचिका) दायर की जिसका दर्ता नं. ३१९३ है ।

इसी प्रकार १९९९ में प्राध्यापक तथा “नेपाल ः टिस्टादेखि सतलजसम्म” के लेखक फणीन्द्र नेपाल, पूर्वी नेपाल के आदिवासी किरांत समुदाय के यमबहादुर कुलुङ, पत्रकार प्रकाश देवकोटा, समाजसेवी बाल कुमार अर्याल जैसे विभिन्न पेशा में संलग्न व्यक्तियों ने नेपाली जनता का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हुए सामूहिक रूप से नेपाल की सर्वोच्च अदालत काठमाण्डू में “वृहत्तर(गे्रटर) नेपाल” सम्बन्धी दूसरी रिट(याचिका) दायर की । इस रिट(याचिका) का दर्ता नं. ३९४० है और इसमें मंत्रीपरिषद् सचिवालय, सम्माननीय प्रधान मंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय, परराष्ट्र मंत्रायल, भूमि सुधार तथा व्यवस्था मंत्रायल के साथ—साथ रक्षा मंत्रायल सिंहदरबार को भी परिवादी बनाया गया है ।

सर्वोच्च अदालत के माननीय न्यायाधीश हरिप्रसाद शर्मा, दिलीप कुमार पौडेल और खिमराज रेगमी के विशेष इजलास ने नेपाल अधिराज्य का संविधान, १९९०(२०४७) की धारा २३ और ८८ (१) तथा (२) के अनुसार दायर दोनों याचिकाओं को २६ जून, २००३ के अपने फैसले में निरस्त कर दिया । उस फैसले को चुनौती देते हुए निवेदकओं ने सर्वोच्च अदालत के समक्ष पुनरावलोकन के लिए निवेदन नहीं पेश किया ।

गे्रटर नेपाल के उत्साही समर्थक अपने अभियान को व्यापक बनाने के प्रयासों में लगे रहे । उनलोगो ने सर्वसाधारण व्यक्ति से लेकर छोटे–छोटे बालक—बालिकाओं को भी अपने अभियान में आबद्ध करने हेतु ‘ग्रेटर नेपाल सिमानाको खोजीमा’ नामक एक वृत्तचित्र का निर्माण किया । ९ फरवरी, २००८ को नेपाल सरकार के सूचना तथा संचार मन्त्रालय के अन्तर्गत केन्द्रीय चलचित्र जाँच समिति से चलचित्र जाँच प्रमाण–पत्र लेकर वे पूरे नेपाल में इस वृत्तचित्र के प्रदर्शन एवं वितरण में लग गए ।

२०१० में नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचण्ड’ ने भी ‘गे्रटर नेपाल’ के लिए आवाज उठायी । गे्रटर नेपाल के अभियान में एकीकृत नेपाल राष्ट्रीय मोर्चा, नेपाल नेशलिस्ट फ्रन्ट, नेपाल भू–भाग संरक्षण मंच, राष्ट्रीय जागरण पार्टी आदि संगठित रूप से आवद्ध हैं ।

पुस्तक–पुस्तिकाओं, पत्र–पत्रिकाओं, सोशल मीडिया – फेसबुक आदि के माध्यम से अपने अभियान को व्यापक बनाने के प्रयासों में जुटे हैं । २० मई,२०१३ सुबह ९ .२५ बजे झापा जिले के सुमन श्रेष्ठ ने माउन्ट एवरेस्ट के शिखर पर गे्रटर नेपाल का नक्शा फहराया । राजधानी काठमाण्डू के एक समारोह में पहाडियों ने सुमन श्रेष्ठ का अभिनन्दन किया । इस अवसर पर सीमाविद् बुद्धिनारायण श्रेष्ठ ने पर्वतारोही सुमन श्रेष्ठ को माला पहनाया और अवीर लगाया ।

नए संविधान में गे्रटर नेपाल की सीमा और क्षेत्रफल का उल्लेख करने की मांग को लेकर ग्रेटर नेपाल राष्ट्रवादी मोर्चा ने नेपाली नया साल २०७१ बैशाख १ तदानुसार २०१४, अप्रैल १४ से देशव्यापी हस्ताक्षर अभियान चलाया । २० जनवरी, २०१५ को ग्रेटर नेपाल राष्ट्रवादी मोर्चा ने नए संविधान में गे्रटर नेपाल की सीमा और क्षेत्रफल का उल्लेख करने हेतु दबाव बनाने के उद्देश्य से काठमाण्डू के नयाँ बानेश्वर स्थित संविधान सभा भवन के आगे बैनर के साथ प्रदर्शन किया ।

आश्चर्य है कि १९५० की भारत–नेपाल संधि की धारा– ८ के आधार पर गे्रटर नेपाल बनाने के लिए पहाडियों द्वारा संचालित अभियान को संवैधानिक एवं कानूनी करार दिया जाता ह,ै जबकि उसी संधि की धारा– ८ के अनुसार “मुक्त तराई” के लिए मधेशियों द्वारा संगठित अभियान को असंवैधानिक और गैरकानूनी । कहने की जरूरत नही है कि नेपाल में १९५० की शान्ति एवं मैत्री सन्धि की धारा– ८ का बिल्कुल दोहरा मापदण्ड है ।

पूर्व के घटनाक्रम प्रमाणित करते है कि पहाडी शासकों द्वारा बडे सुनियोजित ढग से मधेशियों को मूलभूत नागरिक एंव मानव अधिकारों से वंचित रखा गया है और उनके न्यायपूर्ण आन्दोलन का भीषण नरसंहार कर दमन करने के लिए सभी पहाडी एकजुट रहते हैं ।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने प्रतिवेदन में तराई(मधेश) में नेपाली(पहाडी) अद्र्धसैनिक बलों द्वारा मधेशियों को गैरकानूनी रुप से गिरफ्तार कर उनकी नृशंस हत्याओं को सार्वजनिक किया है । सन् २०११ जनवरी ११ को जेनेवा में संयुक्त राष्ट्रसंघीय मानव अधिकार परिषद के विश्वव्यापी आवधिक समीक्षा (यूपीआर) में नेपाल के प्रतिनिधि तत्कालीन उपप्रधान तथा विदेश मन्त्री सुजाता कोइराला से तराईवासियों की गैरन्यायिक हत्याओं और दोषियों पर कारवाई के बारे में प्रश्न किए गए ।

अन्तर्राष्ट्रीय और नेपाल के मानवाधिकारवादी संस्थाओं के अनुसार भविष्य के होनहार लगभग ३०० मधेशी सपूतों की कायरतापूर्ण गैरन्यायिक हत्याए की जा चुकी हैं और यह क्रम जारी है, करीब डेढ हजार लोग गैरकानूनी बन्दी जीवन बिताने के लिए विवश किए गए हैं ।

ताजा स्थिति यह है कि पहाडी शासकों ने गांव—गांव में पहाडी पुलिस की चौकी, कुछ किलोमीटर पर पहाडी अद्र्धसैनिक सशस्त्र बल का कैम्प और जिले–जिले में पहाडी सैनिकों का बैरेक खडा कर मधेश को हिटलर के कैदखाना मे. परिणत कर दिया गया है और मधेशियों के विरोध की हर आवाज को बडी बेरहमी से कुचला जा रहा है ।

हम, आप से विनम्र आग्रह करते हैं कि आप अपने स्वतन्त्र स्रोत से सच्चाइयों का पत्ता लगाएं कि मधेश में नेपाली शासन के प्रति कितना विरोध एवं नफरत हैं । जब से नेपाली शासकों ने तराई मुक्ति आन्दोलन को बन्दूक की ताकत पर कुचलना शुरु किया, तभी से हमने बाध्यतावश प्रतिरोध की कारवाई का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सम्भाली है ।

अतः हम सम्माननीय प्रधानमन्त्री और भारत सरकार से अपील करते हैं कि वे मधेश को नेपाली औपनिवेशिक शासन से मुक्ति दिलाने एवं मधेशियों को स्वयं अपना राजनैतिक भविष्य निर्धारित करने में न्यायपूर्ण सहयोग करें

जयकृष्ण गोइत
संयोजक
अखिल तराई मुक्ति मोर्चा



Wednesday, July 22, 2015

Labor Bill पर एक दो बातें

मान लो आर्थिक मंदी आयी। चीन में तो ३० साल में एक भी नहीं आई। न जाने कैसे वैज्ञानिक लोग हैं चीन में। लेकिन अमरिका बेलायत में तो ७-८ साल में एक बार मंदी आना ही है। मानसून की तरह रेगुलर आती है। तो जब मंदी आती है तो अमरिका में लोगों को नौकरी से हटाने लगते हैं। "You are fired."

जर्मनी में वैसा नहीं होता। मंदी आती है तो लोगों को बाहर फेंकने के बजाय सब को कहते हैं, अब लोग हप्ते मैं पाँच नहीं चार रोज काम करेंगे, और सबके तनख्वाह में थोड़ी थोड़ी कटौती कर दी जाएगी।

दो अलग  हैं। दोनों काम करते हैं। Both of them work.

तो इंडिया इतना बड़ा देश है। Land Bill, Labor Bill ---- जो controversial bills हैं उस पर जम के open, full debates होना चाहिए। नारेबाजी नहीं, full debates. अभी तक मैं देख रहा हुँ नारेबाजी हो रहे हैं। जैसे आप Land Bill के विरोध में हजार लोग हजार बार हजार शहरों में एक ही लाइन बोलेंगे तो वो तो नारेबाजी हुई। ये किसान विरोधी है। अमीरो की सूटबूट सरकार मुर्दाबाद। ठीक है, आप ने अपना अधिकार जताया, नारेबाजी की, कोई दिक्कत नहीं। अब जरा debate पर भी तो आओ।

  • Hold full fledged open, informed debates and discussions. Informed का मतलब बिज्ञ लोगों की भी राय सल्लाह लिजिए। आप चुनाव जित के आ गए तो क्या हुवा? इनसाइक्लोपीडिया का लस्सी पि तो नहीं लिए। 
  • Attempt synergies and fusions. 
  • Come up with uniquely Indian solutions. 
  • Make room for federalism. Make room for diversity in solutions. Different states might legitimately come up with different versions of the land and labor bills. 
अभी तक का समस्या मैं देख रहा हुँ debate नहीं नारेबाजी हो रहा है। 









Friday, July 17, 2015

Why SD Muni Is Perplexed By Nepal

Indians understand Indophobia. The country could not have become independent if it had not understood Inodophobia. Indians understand Indophobia in Pakistan. Or Britain, where they apparently get called "Paki." Indians understand.

But Indians don't understand Indophobia in Nepal. It is because they refuse to face the fact that it is what it is, and it exists. They have a hard time believing that Indophobia might exist in a country like Nepal that is so small and so poor and 200% dependent on India for everything. They have a hard time because Nepal is largely a Hindu country like India is. There's shared culture, religion, people watch Hindi movies in Nepal. Indians think, we are the same people. How can you hate yourself?

Indians are in denial. It is Indophobia, and it exists. Actually it is at the center of the worldview of those who hold power in Kathmandu. It is no small matter, no small detail. You can not cure a disease that you do not first correctly diagnose.

Not just SD Muni, but Modi himself is perplexed. How can he mean so well, and give so much, and go so unappreciated? He does not understand.

Racism does not have logic, racism is not supposed to have logic. Indophobia is racism. And it exists in Nepal, it is directed against Indians. It is the top worldview of those who hold power in Kathmandu. Indophobia is no footnote in Kathmandu.

And, yes, it is partially self hate. Nepalis are a sorry lot across the world. The cure to that is a stronger South Asian identity. The cure is India getting veto power at the UN, the cure is Hindi becoming the UN's sixth language. But the official hatred of Hindi in Nepal is total. You might have heard of gay people who are homophobic. It is a phase of self hatred they go through. Some day hopefully they get past it and learn to accept themselves.

Indophobia in Nepal might be self hate. But it exists, it's real. And Madhesis bear the full brunt of it. It is not theoretical to the Madhesis of Nepal.



Thursday, July 09, 2015

भारत देश होइन महादेश हो



भारत देश होइन महादेश हो। यूरोपियन यूनियन, इंडियन यूनियन। भारतले चाहिं आर्थिक एकीकरण र राजनीतिक एकीकरण पनि गर्न भ्याएको। युरोप मा पहिला मुद्रा एकीकरण गरे। त्यो अधकल्चो भयो। त्यस पछि आर्थिक एकीकरण गरे कनीकुथी। बड़ो गार्हो काम। कति भयो, कति बाँकी छ। कति भएको पनि उल्टिंदैंछ। गार्हो काम। तर आर्थिक एकीकरण गर्ने अनि राजनीतिक एकीकरण नगर्ने हो भने ग्रीस जस्ता समस्या आइ पर्छन।

भारत भनेको अमेरिका, युरोप र अफ्रिका एक ठाउँमा ल्याए जस्तो हो। त्यति विशाल छ भारत को जनसंख्या। भारत ले मौद्रिक, आर्थिक, राजनीतिक एकीकरण सब थोक गर्न भ्याएको। गुजरात भनेको फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन जस्तो। बिहार भनेको पोलैंड जस्तो।

संसारका सफल र प्रभावशाली अर्थतंत्र सबै ठुला ठुला देशमा नै छन। अमेरिका, चीन, भारत। ठुलो बाजार मा बढ़ी आर्थिक गतिबिधि हुन्छ। त्यस कारणले।

धनी पश्चिमी जर्मनी र गरीब पुर्वी जर्मनी बीच जब एकीकरण भयो धनी पश्चिमी जर्मनी लाई निकै घाटा लाग्यो।

पुर्वी युरोप का देश हरु यूरोपियन यूनियन को सदस्य्ता लिन तछाड़मछाड़ गर्छन। हाई स्कुल मात्र पढेकाले कॉलेज पढ्न खोजे जस्तो गरेर। तर नेपाल लाई इंडियन यूनियन को सदस्यता लिन कुनै हतार छैन। बरु उल्टै भारत प्रति विद्वेष को भाषा बोल्ने नेपालको राजनीति मा माथि पुग्छ। त्यो एउटा गरीब देशको राजनीतिक संस्कृति हो। गरीब छौं गरीब नै भएर बस्छौं भनिएको हो।

संस्कृति कै कुरा गर्ने हो भने खस हरुको संख्या नेपालमा भन्दा भारतमा बढ़ी छ।

नेपालमा भारतले हस्तक्षेप गर्यो भन्ने गरिन्छ। दुईटा को राजनीतिक एकीकरण हुन्छ भने नेपालको कुनै सांसदले पुरा भारत माथि शासन गर्न सक्छ। एउटा राजाले अर्को राज्य हड़पे जस्तो होइन। लोकतान्त्रिक एकीकरण मा त्यस्तो हुन्छ।

सिक्किम + दार्जिलिंग + उत्तराखंड = Greater Nepal
Geopolitics भन्ने शब्द
लोकतंत्र, संघीयता र आर्थिक क्रान्ति
नागरिकता बारे हुनु पर्ने
मधेसी र चुरिया
लोकतंत्र भनेकै एक व्यक्ति एक मत हो
द्वैध नागरिकता को सवाल
तराईका मधेसी, दार्चुलाका खस र नागरिकताको सवाल
नागरिकता मस्यौदा ल्याउने माधरचोद हरु
विचार र शक्ति
भारतको बुहारी अथवा जवाईं नभएको एउटा मधेसी परिवार छैन
कि मधेसीले समानता पाउँछ कि देश टुट्छ
Nepal GDP $20 Billion, Bihar GDP $60 Billion
नेपालमा सार्वभौमसत्ता जनतामा छ भने
हिन्दी भाषा को पहाड़ी हरु लाई महत्त्व
मधेसी पार्टी हरु एक नहुनु को कारण
हिपत महानगर: परिमार्जित आईडिया


रोडमैप ऐसा हो सकता है
  • चुंकि नेपालमे सार्वभौमसत्ता जनता के हात में है इसी लिए भारत के साथ आर्थिक और राजनीतिक एकीकरण के मुद्दे पर अन्तिम फैसला नेपालकी जनता ही कर सकती है। 
  • इस बात को मुद्दा बना के पार्टियाँ जनता में जाएंगे। इस मुद्दे को संसद में बहुमत मिल जाती है तो देश जनमत संग्रह में जाएगी। जनमत संग्रह में बहुमत मिल जाती है तो प्रक्रिया शुरू। ये जरुरी नहीं की भारत मान जाए। और सिर्फ भारत के प्रधान मंत्री के मानने से नहीं होना है। मेरे को गारंटी है राज ठाकरे इस बात का विरोध करेगा। कहेगा कंगाल देश है हमें भी कंगाल कर देगा, दुर ही रखो, बिहार से निपट नहीं पाए हैं अब शर पर नेपाल भी रखेंगे? दिमाग ख़राब है क्या हमारा? भारत सरकार अगर मान भी जाती है तो भारत के संसद को बहुमत से अनुमोदन करना होगा। 
  • उसके बाद एकीकरण की प्रक्रिया शुरू। 
  • १० करोड़ के आधार पर बिहार के पास ४० लोक सभा सदस्य हैं तो नेपाल को ३ करोड़ के आधार पर १३ मिले, राज्य सभा में बिहार को १६ है तो नेपाल को ५ मिल जाए। नेपाल के ७५ जिले कायम रह जायें। 
नेपाली जनता के living standard को उपर ले जाने का इससे बेहतर आईडिया कोई है ही नहीं। नहीं तो हेटी अमरिका के कितना पास है और कितना गरीब है? 

Sunday, July 05, 2015

लोकतंत्र, संघीयता र आर्थिक क्रान्ति

लोकतंत्र, संघीयता र आर्थिक क्रान्ति। लोकतन्त्र पहिलो तल्ला घरको, संघीयता दोस्रो, आर्थिक क्रान्ति तेस्रो।

अधिकार भनेको बनिया को बहीखाता होइन। फाइदा भए दिने, होइन भने नदिने। कसैले कसैलाई अधिकार दिने नै होइन। जन्मँदै प्रत्येकले आफु सँग लिएर आएको अधिकार हरु लाई मान्यता दिने मात्र हो। हामी जाबो को हौं र कसैलाई अधिकार दिने?

जनताले क्रांति गर्दा शासक सँग अधिकार मागेको होइन --- शासक को भखारी को चामल होइन अधिकार। अधिकार बाहिर बाट दिने होइन, भित्र बाट आउने हो। अधिकार भनेको ह्रदय भित्र बाट आउने गीत संगीत जस्तो। चाहे त्यसले डांडा कांडा गुंजायमान पारोस।

लोकतंत्र अधिकार हो भने संघीयता पनि अधिकार हो। बढ़ी संख्या मा राज्य बनायो भने खर्च बढ्छ त्यसैले हुन्न भन्ने तर्क विभिन्न कारणले गलत हो। पहिलो कुरा त न्याय को हुन्छ। न्याय महँगो भयो भनेर अन्याय गर्ने कुरा आउँदैन। तर त्यो तर्क नै उल्टो हो। सबै भन्दा सस्तो संघीयता मा २५ राज्य हुने हो, टेक्निकल कुरा गर्ने हो भने। आठ राज्य मा सहमति भएको अति ठुलो गल्ती हो। तर लोकतन्त्र ले गल्ती गर्ने अधिकार दिएको हुन्छ।

लोकतंत्र अधिकार हो, तर अवसर पनि हो। संघीयता अधिकार हो, तर अवसर पनि हो। अवसर यस माने मा कि लोकतंत्रले पनि र संघीयताले पनि आर्थिक क्रान्ति सम्भव बनाउँछ।

मोदी प्रधान मंत्री बन्दा भारत को अर्थतंत्र दुई ट्रिलियन डॉलर को। अब केही वर्ष भित्र त्यो तीन ट्रिलियन भइसक्छ। त्यो जुन थप एक ट्रिलियन छ त्यो उसले कुन देश बाट चोरेर ल्याउने हो? त्यो कतै बाट चोरेर ल्याउने होइन, त्यो फॉरेन ऐड बाट आउने होइन। त्यो जादुगर ले हावा बाट खरायो निकाले जस्तो हो। त्यो पहिला कहीं हुँदै नभएको एक ट्रिलियन उसले थप्न लागेको। कुन स्टीव जॉब्स र कुन ईलोन मस्क अथवा कुन ल्यारी पेज ले त्यसरी एक ट्रिलियन कतै थप्न भ्याएको छ?

नेपालमा एउटा रोटी छ, त्यो रोटी अहिले बाहुन सँग छ, मधेसी, जनजाति, दलित र महिला लाई बाँड्ने हो भने बाहुन भोकभोकै बस्ने? संघीयता विरोधी हरुको दिमागमा त्यस किसिमको सोंच बारम्बार देखिएको छ। जब कि यथार्थ के हो भने अहिले नेपालमा एउटा रोटी छ भने संघीय नेपाल ले पाँच वर्षमा पाँच वटा रोटी सेक्छ। संघीयता ले आर्थिक क्रान्ति संभव बनाउँछ। बाहुन को घट्ने होइन। नपाएका ले पाउने हो र सबै को बढ्ने हो, बाहुनको पनि बढ्ने हो।

विचार र शक्ति


Saturday, May 02, 2015

भारतको रोल, चीनको रोल, नेपालको आफ्नो रोल

Politics भित्र राजनीति घुस्यो भनेर भनिन्छ।

तथ्यगत रुपले हेर्दै जाऊँ ---- मीडिया मा आउने प्रत्येक लेख लाई सीरियसली लिन मिल्दैन ---- मीडिया को काम नै हो प्रत्येक एंगल बाट लेख्ने, पत्रिका बेचने, कहिले भएको कुरा लेख्ने, कहिले नभएको पनि लेख्दिने। तर भारत प्रति निकै आक्रामक ढंगले एक वर्ग प्रस्तुत हुँदैछ। एउटा उदहारण:

महाभूकम्पमाथिको डरलाग्दो राजनीति
सीमित उद्धारकर्मी तथा राहत बोकेर काठमाडौं उत्रिएको चीनले थप नयाँ प्रस्ताव नगरुन्जेल राजनीतिकजगत् तथा सरकारमाथि ‘चीनबाट थप सहयोग नल्याउने’ दबाब दिन भारतीय पक्षले भूमिका खेलिसकेको प्रस्ट बुझ्न सकिन्छ ।
यो पनि पत्याउने कुरा हो? चीनको सहयोग नलेउ भन्छ भारतले? यस्तो विपत परेको बेला?
सोमबारसम्म उद्धारमा प्रयोग हुने भारतीय सैनिक हेलिकप्टर दर्जन पटकभन्दा बढी आइसकेको थियो भने चीनले सबभन्दा बढी क्षति भएको आफ्नो मुलुकको छिमेकी जिल्ला सिन्धुपाल्चोकको सम्पूर्ण उद्धार तथा अरनिको राजमार्ग २४ घन्टाभित्रै खुलाइदिने प्रस्ताव गर्‍याे । सो प्रक्रियाका लागि आफूले १० वटा स–साना हेलिकप्टर तयार राखेको समेत जनाउ दियो । .... नेपाल सरकारको स्वीकृतिको पर्खाइमा रहेको चिनियाँ टोलीले गृहलगायतका प्रभावकारी सबै मन्त्रालयलाई अनुमतिका लागि गुहार्‍याे । तर, सबै मन्त्रालय मौन रहे । यसरी मौन रहनुमा भारतीयहरुले चिनियाँ काम प्रभावकारी नहोस् भनी हालेको छेकबारका रुपमा कूटनीतिक विश्लेषकहरुले टिप्पणी गरेका छन् । ...... सरकारसँग क्षतिग्रस्त जिल्लाहरुमा उद्धारका लागि आवश्यक सामग्री नहुनु तर आफैंले गर्छु भनेर प्रस्ताव गरेको चिनिया सहयोग–प्रस्ताव अस्वीकार गरिनु राजनीतिक खेल मात्रै नभएर मानिसहरुमाथि गरिएको अपराध समेत हो । यसो हुनुको खास कारण भारतीयहरु ‘नेपालमा चिनियाँ प्रभाव बढ्न नदिने’ आफ्नो स्वार्थमा तल्लिन रहनु तथा नेपाल सरकार र मुख्यतः गृहप्रशासन भारतीयहरुका अगाडि लाचार हुनु नै हो भन्ने कुरा स्वतः स्पष्ट छ । यो सवालमा गृहमन्त्री वामदेव गौतमको चर्को आलोचना हुँदै आइरहेको छ ।
ल भयो अब! बामे ले गरेको ठुलो गलती को दोष मोदीले लिनुपर्ने? बामे त्यही मान्छे हो जसले मोदीलाई जनकपुर जान दिएन। याद छ? अमेरिका ऑस्ट्रेलिया मा मोदीले आम सभामा बोल्दा अमेरिका ऑस्ट्रेलिया को राष्ट्रियता लाई धक्का पुगेन। ओबामा खुदले कहिले सेंट्रल पार्कमा बोलेको छैन, मोदीले बोल्यो। जनकपुरमा आम सभामा बोल्दा नेपालको राष्ट्रियता मा धक्का पुग्ने जस्तो लाग्यो उसलाई! ५०० करोडको घाटा लाग्यो जनकपुरलाई बामेको बदमाशीले गर्दा। त्यो बामे को गल्तीको दोष मोदीले लिनुपर्ने?

सिन्धुपाल्चोक तामांग हरुको इलाका हो, बाहुन हरुको इलाका होइन, अनि बामे लाई किन मतलब हुन्छ त  सिन्धुपाल्चोकको? संघीयता मा यसरी विपत पर्दा काठमाण्डु को मुख ताक्नु पर्ने हुँदैन। भाको कुरा।
यसबीच अन्तर्राष्टिय सञ्चार माध्यमहरुमा भारतीयहरुले ठूलठूला हल्ला गर्न भ्याए । आफ्नो उपस्थितिविना नेपालमा उद्धार नै सम्भव नरहेको भन्नेजस्ता हल्ला चलाए । यता आफूले उद्धार गर्न भनी ल्याएका हेलिकप्टरहरु भारतीय मिडियाका सञ्चारकर्मीहरुलाई घुमाउन र ‘लाइभ’ खिँचाउन प्रयोग गराए । एक चर्चित सञ्चारकर्मी टेलिफोनबाट दोलखाको एक घटनालाई दुःखद् रुपमा सुनाउँदै थिए–‘बुधबार दिउँसो भारतीय हेलिकप्टर दोलखाको चाइनासँग सीमा जोडिएको लामाबगर पुग्यो, ११ वटा त्रिपाल झार्यो अनि ३ जना भारतीय नागरिक लिएर फर्कियो । यसले भारतीयहरुको काम गर्ने शैली र स्वार्थ प्रस्ट्याउँछ ।
भारत बाट गरिने सहयोग को खर्च भनेको भारतको करदाता ले हो। अनि त्यो करदाता लाई जानकारी गराउने भनेको मीडिया बाट हो। फर्किंदा "३ जना भारतीय नागरिक" नटिपेर हेलिकॉप्टर खाली नै फर्केको भए राम्रो हो? के भनेको?

I am sure there have been inevitable issues with logistics. That is where it has been for the Nepal Government to play a key role. But look at these:

प्रत्यक दिन ५०००० खाना उपलब्ध गराउछौं, सरकारले समन्वय गरेन: शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबन्धक कमिटी
विदेशी उद्धार टोली परिचालन नभई फर्किने तयारीमा

विदेशमा रहेको प्रधान मंत्री लाई आफ्नो देशको इतिहास को सबै भन्दा ठुलो ट्रेजेडी को समाचार उसको आफ्नो सरकारको कसैले दिएन -- मोदीले व्यक्तिगत दियो। राष्ट्रियता ले ओतप्रोत उसकै उप प्रधान मंत्री अझ कायम मुकायम प्रधान मंत्री किन भएन त्यो समाचार दिने पहिलो मान्छे?

चीन ले अध्ययन नै गरिरहँदा भारतले पहिले खेप मदत पठाइ सकेको थियो। नेपालको राहत प्रयासमा चीन को भारत संग कुनै प्रतिस्प्रधा छैन, हामी मिलेर काम गर्छौं भनेर चीनले बिज्ञप्ति निकाल्यो। भारतले प्लेन मा त पठायो पठायो, तुरुन्तै ५०० ट्रक सामान पठायो, तेल जति चाहिन्छ लेउ भन्यो।

बरु कांग्रेसले पार्टीगत बदमाशी गरेको देखियो। यो संगठन विस्तार गर्ने समय होइन बाबा --- time for that will come. That time is not now.
विनाशकारी भूकम्पबाट घाइतेहरुलाई उद्धारमा समेत सत्तासीन दल, मन्त्री तथा पहुँचवाला नेताहरुबीच राजनीति चल्यो । सत्तासीन दलका केही मन्त्रीहरु हेलिकप्टर चढेर तुलनात्मक रुपले कमै मात्र प्रभावित आफ्ना गाउँघर पुगे अनि आफन्तजनहरुलाई बटुलेर काठमाडौं फर्किए । प्रभावित जिल्लाहरुमा समेत पहुँचवाला नेताहरुले चाँडो उद्धार तथा राहत पुर्याए भने पहुँच नभएका नेताहरु भएका जिल्ला तथा क्षेत्रहरुमा निकै ढिलोगरी मात्रै उद्धार तथा राहत पुग्यो–पुग्दैछ ।

यता अब करिब करिब उद्धार सकिएपछि राहत दिन ढिलो भइसकेका बेला अन्तर्राष्ट्रिय तथा राष्ट्रिय सहयोगबाट प्राप्त राहत सामग्री सेनाका ब्यारेक तथा जिल्लाका केन्द्रहरुमा थुप्रिएर बसेका छन्; उता पीडित मानिसहरु भोकै मर्ने स्थिति बनिसकेको छ । राहतलाई व्यवस्थित गर्न सत्तासीन दलले मात्रै सक्ने र भ्याउने अवस्था छैन । सत्तासीन दल राहत वितरण तथा उद्धारकार्यलाई समेत ‘भोटको राजनीति’ सँग जोडेर हेरिरहेका छन् ।

प्रभावित जिल्लाहरुमा गाविसस्तरसम्म तत्कालै सर्वपक्षीय राहत तथा उद्धारा समितिहरु बनाउनु र व्यवस्थित गर्नुको सट्टा उनीहरु आफ्ना कार्यकर्ताका हातबाट ‘राहत वितरण’ को चाँजोपाँजो कसरी मिलाउने भनी जोखाना हेरिबसेका छन् । सत्तासीन दलले राहतलाई राजनीतिक फाइदा–घाटासँग जोड्दा प्रतिपक्षी दलहरु पनि आ–आफ्नो ढंगले मात्रै राहत तथा उद्धारमा लागेका देखिन्छन् । आवश्यकता भने सम्पूर्ण शक्ति एकीकृत रुपमा राहत तथा उद्धारमा खट्नुपर्ने छ ।

दुःखद् पक्ष अर्को पनि के हो भने यति ठूलो विपत्तिको घडीमा समेत राजनीतिक नेताहरुको सर्वपक्षीय बैठक र महाविपत्तिको एकीकृत निर्णय हुन सकेन । औपचारिकतामा सीमित एउटा सर्वपक्षीय बैठक बसे पनि त्यसले कुनै ठोस निर्णय र योजना निर्माण गरेन । सरकार यति असरल्ल देखियो कि ऊ सम्पूर्ण रुपमा भूकम्पसँगै बिलिन भयो र सरकारको प्रत्याभूति दिनै सकेन ।

Dipak Jung Thapa writes- भारत विरोधी लाई भारत को विरोध न गरि खानै पच्दैन.. ल हेर्नुस सानो उदाहरण भारतिय कोकाकोलाले आइतबार १० हजार वटा एक लिटर पानीका बोतलहरु नेपालमा पठाइसकेको छ। त्यस्तै गोदरेज इन्ड्रष्ट्रीजका कामदारले पनि एक दिन बराबरको तलब रकम नेपाल पठाउने निर्णय गरेका छन्। भारतीय टाटा कम्पनी महिन्द्रा एण्ड महिन्द्राले भने आधार शिविरमा सहयोग पुर्‍याउनको लागि आफ्नो नेपाल स्थित बितरकलाई सो स्थानमा ट्रयाक्टर र पिक अप पठाउन निर्देशन दिएको छ। त्यसैगरी भारतीय आइटिसीको नेपाल स्थित भातृ कम्पनी सुर्य नेपाललेे खाद्य पदार्थका दुई लाख प्याकेट र नौ टन बराबरको आफुले उत्पादन गर्दै आएकेा बिस्कुट पठाएको छ। भारतको डावर कम्पनीको भातृ कम्पनी डाबर नेपालले जुस तथा ग्लुकोजको प्याकेट पठाएको छ। इमामी कम्पनीले ब्ल्यांकेट तथा औषधि पठाएको छ भने रस्ना कम्पनीले भने सात टन बराबरको ग्लाुकोज तथा पाउडर दुध पठाउने भएको छ । पेमेन्ट बालेट अक्सीजेनले दैनिक कारोबारको एक प्रतिशत रकम भुकम्प पिडितलाई प्रदान गर्ने निर्णय गरेकेा छ। स्पाइस जेटले बिभिन्न देशबाट नेपालका लागि प्रदान गरिएको राहत सामाग्री, डाक्टर र उद्धारकर्मीहरुलाई निशुल्क नेपाल सम्म ल्याइदिने भएको छ। त्यस्तै एयर इन्डियाले भाडादरमा केही कमि ल्याएको छ।





Monday, August 25, 2014

Nitish, Bihar, And Development

English: Flag of Janata Dal (United) of India
English: Flag of Janata Dal (United) of India (Photo credit: Wikipedia)
Map of Bihar showing location of Bhimbandh Wil...
Map of Bihar showing location of Bhimbandh Wildlife Sanctuary (Photo credit: Wikipedia)
Lalu Prasad Yadav, at a political meeting in K...
Lalu Prasad Yadav, at a political meeting in Kesariya, Bihar, India. (Photo credit: Wikipedia)
Bihar has seen the emergence of a new alliance with Nitish, Lalu and the Congress coming together. The other of course is the BJP alliance with the likes of Ram Vilas Paswan that swept the recently held national elections.

Right now the two alliances are running neck and neck. That means it will be a close fight next year in Bihar, but it is advantage BJP. Right now Sushil Modi is running ahead. In Bihar it might be 50-50. But in Uttar Pradesh it will be a total sweep by the BJP also at the state level.

Bihar is one place that could give Modi something akin to an opposition. And Modi in Gujrat was known as a man who brooks no opposition. His China model is not only economic, it is also political. He does not like the idea of having much of an opposition. And so he is going to do all he can to put Bihar into Sushil Modi's lap. Sushil Modi is not a bad candidate. He was deputy to Nitish in Bihar's spectacular success story. So he can legitimately take some credit.

If Narendra Modi could sweep Bihar as merely a prime ministerial candidate, imagine what he could do as a performing PM. And I expect him to perform.

Nitish has a tall task before him that has been made tougher by Lalu's mandal-kamandal talk. You can not beat Narendra Modi with that. The way to beat Narendra Modi is with development talk. Laloo was spectacular as Railway Minister, Nitish was the top performing Chief Minister in the country. It is not like they don't have it. But they are not talking development. That is problematic. Right now Nitish is all set to lose the elections next year.

Maybe the real story here is that his break up with the BJP was a bad move. Nitish was the first person to call Narendra Modi a future PM. That was back in 2003, I think. Looks like somewhere along the way he switched his position but has refused to play the role.

He could talk all development all the time and give Narendra Modi a run for the money. But he is not doing it. Puzzles me.

For now Narendra Modi is the man to watch. His political goal seems to be to form BJP governments in enough states that he also ends up with a majority in India’s upper house. His organization people have major plans for the North East and the South. Having a tight grip on the Hindi heartland of Bihar and Uttar Pradesh would go a long way.

All indications are Modi is on his way to giving India growth rates greater than seven per cent. He wants to double the size of the Indian economy by 2020.

Forget Bihar, Modi also has major plans for Nepal. His visit to the country was well appreciated. It felt like he truly wanted a fresh start in a relationship that has always been great but greatly unproductive. If load shedding ends in Nepal within a year or two, you will have Modi to thank for it. He means business.

I still stay curious about Nitish, though. He might have to stop crying hoarse, ke majdoori nahin mili, I did not get my wages. Like Bill Clinton would say, all elections are about the future. The people of Bihar chose to put Modi in Delhi. I am not sure that was a bad choice, economically speaking.

But now Nitish has to make a strong development case for the next five years for Bihar, or make way for Sushil Modi. It is not going to be an easy fight. The two Modis might have to show all tricks up their sleeves to rope in Nitish, once and for all.

The junior Modi is sure determined. Laloo is his usual comic self. Nitish looks a little tired, a little betrayed. He has not taken the latest political debacle too well.

Double digit growth rates are my benchmark, for Modi in Delhi, for the next Chief Minister of Bihar, and for all current and future Prime Ministers of Nepal. Delhi is a tall task, because coordinating all those states across India is no easy task. Patna? Nitish did it year after year. Nepal? Now that is the sad part.

Being in transition does not help. Not having a constitution does not help. There is also the no small matter of not having an obvious leader.